क्या बैडमिंटन की रानी अमी घिया शाह ने पुरुषों के प्रभुत्व वाले दौर में अपने लिए एक अलग मुकाम बनाया?
सारांश
Key Takeaways
- अमी घिया शाह ने बैडमिंटन में अद्वितीय उपलब्धियाँ हासिल कीं।
- उन्होंने 7 बार राष्ट्रीय सिंगल्स खिताब जीते।
- 1978 में कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता।
- अमी ने भारत में महिला बैडमिंटन को नई दिशा दी।
- उनका संघर्ष प्रेरणा का स्रोत है।
नई दिल्ली, 7 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भारत में बैडमिंटन की बात की जाती है, तो सायना नेहवाल और पीवी सिंधु का नाम सबसे पहले आता है। लेकिन उस समय एक अन्य खिलाड़ी भी थीं, जिन्होंने इस खेल में अपने लिए एक अद्वितीय स्थान बनाया, वह हैं अमी घिया शाह।
अमी घिया शाह का जन्म 8 दिसंबर 1956 को गुजरात के सूरत में हुआ। उनका बचपन मुंबई में बीता और बैडमिंटन के प्रति उनका लगाव शुरू से ही था। उन्होंने इस खेल में बड़ी सफलता पाने का सपना देखा और इसके लिए मेहनत की। अमी ने जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली। उनकी कम ऊँचाई के बावजूद, अद्वितीय कोर्टक्राफ्ट, शटल कंट्रोल और लाइन जजमेंट के लिए वह जानी जाती थीं।
1970 का दशक अमी के करियर का सुनहरा दौर था। वह सात बार राष्ट्रीय सिंगल्स चैंपियन बनीं, साथ ही डबल्स में 12 बार और मिक्स्ड डबल्स में चार बार राष्ट्रीय खिताब जीते। अपने 19 साल के करियर में, उन्होंने 36 फाइनल्स खेले, जिनमें 15 एकल फाइनल्स शामिल थे। इन उपलब्धियों के कारण उन्हें उस समय बैडमिंटन की रानी कहा गया।
अमी ने 1978 के एडमॉन्टन कॉमनवेल्थ गेम्स में अपनी साथी खिलाड़ी कनवाल ठाकुर सिंह के साथ कांस्य पदक जीता, जो भारतीय महिलाओं का पहला सीडब्ल्यूजी बैडमिंटन मेडल था। यह उपलब्धि उस समय बैडमिंटन में पुरुषों के प्रभुत्व के दौर में भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी प्रेरणा बनी। अमी ने विश्व कप और एशियन गेम्स में भी भाग लिया।
उन्हें 1976 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1973 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें शिव छत्रपति पुरस्कार से नवाजा।