क्या बैडमिंटन: फुर्ती और सटीकता का खेल, जिसने ओलंपिक में जमाई धाक?
सारांश
Key Takeaways
- बैडमिंटन एक फुर्तीला खेल है जो ओलंपिक में शामिल है।
- भारत के प्रमुख खिलाड़ियों ने इस खेल में ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं।
- बैडमिंटन के नियम सरल हैं और इसे हर कोई खेल सकता है।
- सरकार और कोचिंग स्टैंडर्ड ने खेल को बढ़ावा दिया है।
- युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 16 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बैडमिंटन एक बेहद रोमांचक खेल है, जिसमें खिलाड़ी की गति, फुर्ती और सटीकता दर्शकों का उत्साह बढ़ाती है। वर्तमान में यह खेल बहुत प्रसिद्ध हो चुका है और ओलंपिक में अपनी पहचान बना चुका है।
हालांकि बैडमिंटन का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है, परंतु इसका आधुनिक अवतार भारत के 'पूना' खेल से विकसित हुआ। ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने भारत के पुणे शहर में इस खेल की शुरुआत की थी, जिसके कारण इसे 'पूना' नाम दिया गया।
1873 में अंग्रेज सैनिक इस खेल को अपने देश ले गए और ड्यूक ऑफ ब्यूफोर्ट ने इसे ब्रिटेन में एक संस्करण के रूप में पेश किया। ड्यूक का निवास स्थान ग्लूस्टरशायरबैडमिंटन हाउस था, इसलिए उन्होंने इस खेल का नाम अपने घर के नाम पर 'बैडमिंटन' रखा।
साल 1877 में बाथ बैडमिंटन क्लब ने इस खेल के लिए पहले लिखित नियमों का सेट तैयार किया, और 1893 में इंग्लैंड में बैडमिंटन संघ की स्थापना हुई, जिसने इसके आधुनिक नियमों को संहिताबद्ध किया। करीब 16 साल बाद 1899 में पहली ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप आयोजित हुई, लेकिन ओलंपिक में प्रवेश के लिए इस खेल को लंबा इंतजार करना पड़ा।
ओलंपिक में पहली बार 1972 में एक प्रदर्शनी खेल के रूप में इसकी शुरुआत हुई। 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में इसे पुरुष और महिला एकल और युगल स्पर्धाओं के साथ आधिकारिक ओलंपिक खेल का दर्जा मिला। 1996 अटलांटा ओलंपिक में मिश्रित स्पर्धाओं की शुरुआत हुई।
बैडमिंटन कोर्ट पर 'बेस्ट ऑफ थ्री गेम' खेले जाते हैं, जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी या टीम 21 अंक प्राप्त करके गेम जीतता है। इसके लिए दो अंकों का अंतर आवश्यक है। अगर दोनों खिलाड़ी 29-29 अंक तक पहुंच जाते हैं, तो अगला अंक जीतने वाला खिलाड़ी गेम जीतता है, जिसे 'डेथ प्वाइंट' कहा जाता है।
दीपांकर भट्टाचार्य, मधुमिता बिष्ट, सैयद मोदी, पुलेला गोपीचंद, प्रकाश पादुकोण जैसे खिलाड़ियों ने भारत में बैडमिंटन की लोकप्रियता बढ़ाई।
1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में दीपांकर भट्टाचार्य पुरुष एकल में तीसरे दौर तक पहुंचे, जबकि मधुमिता बिष्ट ने महिला एकल में दूसरे दौर में जगह बनाई। 2000 के सिडनी ओलंपिक में पुलेला गोपीचंद ने ओलंपिक डेब्यू में अंतिम 16 में जगह बनाई। 2004 के एथेंस ओलंपिक में अपर्णा पोपट और निखिल कनेटकर को महिला और पुरुष एकल के प्री-क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में साइना नेहवाल क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय बनीं, जबकि अनूप श्रीधर पुरुष एकल के दूसरे दौर से बाहर हो गए।
आखिरकार, 2012 में साइना नेहवाल ने ब्रॉन्ज जीतकर भारत को बैडमिंटन में पहला ओलंपिक मेडल दिलाया।
इसके बाद 2016 के रियो ओलंपिक में पीवी सिंधु ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया, और फिर 2020 के टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
पीवी सिंधु बैडमिंटन में दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बन गईं। 2024 ओलंपिक में लक्ष्य सेन सेमीफाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय पुरुष एकल शटलर बने।
भारत का इस खेल में गौरवशाली इतिहास रहा है। विश्वस्तरीय प्रशिक्षण सुविधाएं, बेहतरीन कोचिंग मानक और सरकार का समर्थन भारत की उम्मीदों को बढ़ा रहे हैं। यदि युवा खिलाड़ियों का प्रदर्शन इसी तरह निखरता रहा, तो भारतीय शटलर ओलंपिक में और अधिक पदक देश को दिला सकते हैं।