क्या आपको पता है 'बैडमिंटन क्वीन' मधुमिता बिष्ट ने साइना-सिंधु से पहले कैसे दिलाई इस खेल में देश को पहचान?

सारांश
Key Takeaways
- मधुमिता बिष्ट का जन्म 1964 में हुआ था।
- वे 1992 ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला शटलर थीं।
- उनके पास 8 राष्ट्रीय एकल खिताब हैं।
- उन्हें 1982 में अर्जुन पुरस्कार मिला।
- उन्होंने 2006 में पद्मश्री से सम्मानित किया।
नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मधुमिता बिष्ट को भारत की उन प्रमुख बैडमिंटन खिलाड़ियों में गिना जाता है, जिन्होंने महिलाओं को इस खेल हेतु प्रेरणा दी। मधुमिता ने अपनी तेज गति, सटीक शॉट और रणनीतिक खेल के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं। मधुमिता भारत के बैडमिंटन जगत की पहचान रही हैं, इससे पहले साइना नेहवाल और पीवी सिंधु के आगमन के।
5 अक्टूबर 1964 को जन्मी मधुमिता बिष्ट 1992 ओलंपिक खेलों की एकल स्पर्धा में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र भारतीय महिला शटलर थीं, जिन्हें 'उत्तराखंड की बैडमिंटन क्वीन' कहा जाता है।
मधुमिता बिष्ट ने आइसलैंड की एल्सा नीलसन को 11-3, 11-0 से हराकर अपने अभियान की शानदार शुरुआत की थी। दूसरे गेम में मधुमिता ने अपनी प्रतिद्वंदी को एक भी अंक नहीं लेने दिया। हालांकि, अगले मुकाबले में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन की जोआन मुगेरिज से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा और हार का सामना करना पड़ा।
1997 में सब जूनियर बैडमिंटन चैंपियन बनने वाली मधुमिता बिष्ट 8 बार राष्ट्रीय एकल विजेता रह चुकी हैं। इसके अलावा, उन्होंने 9 बार युगल विजेता और 12 बार मिश्रित युगल विजेता बनने का गौरव भी हासिल किया।
मधुमिता बिष्ट ने 1982 में एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। 1998 में वह इस प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं।
यह उल्लेखनीय है कि 1992 में तत्कालीन वर्ल्ड नंबर-2 कुसुमा सरवंता ने मलेशिया ओपन अपने नाम किया था। मधुमिता ने अगले ही सप्ताह उन्हें हराया।
वर्ल्ड कप और उबेर कप में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी मधुमिता ने 2002 में खिलाड़ी के रूप में संन्यास का ऐलान किया। इसके बाद उन्होंने सरकारी पर्यवेक्षक और हेड कोच के रूप में कार्य किया। वह भारतीय खेल प्राधिकरण बैडमिंटन अकादमी में भी काम कर चुकी हैं।
मधुमिता बिष्ट के समर्पण और कठिन परिश्रम ने उन्हें खेल जगत में एक सम्मानित स्थान दिलाया है। इस खेल में उनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए 1982 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया और 2006 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।