क्या भाविना पटेल ने पैरा टेबल टेनिस में देश को पहला मेडल दिलाया?
सारांश
Key Takeaways
- भाविना पटेल का संघर्ष प्रेरणादायक है।
- शारीरिक कमी को कमजोरी नहीं समझना चाहिए।
- मेहनत और धैर्य से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
- भाविना ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
- उनकी कहानी युवाओं के लिए प्रेरणा है।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भाविना पटेल हमारे देश की प्रमुख पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं। उनकी उपलब्धियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि किसी भी प्रकार की कमी, चाहे वह शारीरिक हो या अन्य, हमें हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने से नहीं रोक सकती।
भाविना पटेल का जन्म 6 नवंबर 1986 को गुजरात के मेहसाणा जिले के सुंधिया गांव में हुआ। जब वे सिर्फ 12 वर्ष की थीं, तब पोलियो के कारण उनका दायां पैर प्रभावित हो गया। किसी भी बच्चे का पैर प्रभावित होना उसके माता-पिता के लिए चिंता का विषय होता है, और भाविना के माता-पिता को भी उनकी भविष्य की चिंता थी। उनके पिता हसमुखभाई पटेल ने कभी भी उनकी शारीरिक अक्षमता को कमजोरी नहीं बनने दिया और हर समय उनके साथ एक मजबूत सहारा बने रहे।
भाविना ने 2007 में ब्लाइंड पीपल्स एसोसिएशन में कंप्यूटर कोर्स करने के दौरान कुछ बच्चों को टेबल टेनिस खेलते देखा। यहीं से उन्हें इस खेल में रुचि हुई और उन्होंने कोच ललन दोशी के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग शुरू की। व्हीलचेयर पर खेलना आसान नहीं था, लेकिन भाविना ने अपनी मेहनत और हिम्मत से इसे संभव बनाया।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका पहला कदम 2009 में जॉर्डन में रखा। 2011 में थाईलैंड ओपन में एक चीनी खिलाड़ी को हराकर उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। 2013 में बीजिंग में एशियन पैरा टेबल टेनिस चैंपियनशिप में उन्होंने भारत को पहला सिल्वर मेडल दिलाया।
टोक्यो पैरालंपिक 2020 उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय पहचान का सबसे बड़ा मंच बना। क्लास 4 कैटेगरी के फाइनल में उन्होंने जगह बनाई, लेकिन फाइनल में उन्हें चीनी खिलाड़ी झोउ यिंग के खिलाफ 2-3 से हार का सामना करना पड़ा। इस प्रकार उनकी झोली में सिल्वर मेडल आया, जो भारत का पैरा टेबल टेनिस में पहला मेडल था।
भाविना की ओलंपिक सफलता उनकी कठिन मेहनत का परिणाम है। उनकी उपलब्धियाँ उन युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो किसी कमी को असफलता का कारण मानते हैं।