क्या कैनो स्प्रिंट आदिवासी समुदायों की नौकाओं से प्रेरित खेल है, जिसने ओलंपिक तक पहुंच बनाई?

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क्या कैनो स्प्रिंट आदिवासी समुदायों की नौकाओं से प्रेरित खेल है, जिसने ओलंपिक तक पहुंच बनाई?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि कैनो स्प्रिंट, जो आदिवासी समुदायों की नौकाओं से प्रेरित है, ने ओलंपिक में अपनी जगह बनाई है? यह खेल 19वीं सदी से शुरू हुआ और अब इसे वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली है। जानिए इसकी रोचक यात्रा और भारत में इसके भविष्य के बारे में।

Key Takeaways

  • कैनो स्प्रिंट एक जल क्रीड़ा है जो यूरोप से उत्पन्न हुआ।
  • जॉन मैकग्रेगर ने इसे खेल के रूप में मान्यता दी।
  • यह खेल ओलंपिक का हिस्सा बन चुका है।
  • भारत में इसके विकास की संभावनाएं हैं।
  • कैनो और कयाक के बीच अंतर को समझना जरूरी है।

नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कैनो स्प्रिंट एक ऐसा जल क्रीड़ा है, जिसकी जड़ें 19वीं सदी के यूरोप से हैं। इस खेल में पानी पर कैनोइस्ट/कयाकर चप्पू या पैडल का उपयोग करके दूरी तय करते हैं।

आधुनिक कैनो और कयाक की अवधारणा उत्तरी अमेरिका के आदिवासी समुदायों की नौकाओं से प्रेरित थी, जिन्हें यूरोपीय खोजकर्ताओं ने अपनाया।

कैनो स्प्रिंट की खोज का श्रेय जॉन मैकग्रेगर को जाता है, जिन्होंने वर्ष 1860 के आस-पास पारंपरिक मछली पकड़ने वाली नावों को खेल में इस्तेमाल होने वाली नावों में परिवर्तित किया। इसके बाद उन्होंने 1866 में ‘रॉयल कैनो क्लब’ की स्थापना की।

जॉन मैकग्रेगर ने पहली मान्यता प्राप्त प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिससे यह खेल यूरोप और अमेरिका में लोकप्रिय हो गया।

कैनो स्प्रिंट में उपयोग होने वाली नावें लंबी, संकरी और हल्की होती हैं। इस खेल की प्रतियोगिताएं 200, 500, 1,000 और 5,000 मीटर की दूरी पर होती हैं। इसमें घुटनों के बल बैठकर एकल ब्लेड पैडल चलाने वाले को ‘कैनो’, जबकि बैठकर दो डबल-ब्लेडेड पैडल चलाने वाले को ‘कयाक’ कहा जाता है।

इस खेल में 8 व्यक्तिगत एथलीट या नाविक रेस के लिए लाइन-अप होते हैं, जिन्हें अपनी ही लेन में रहना होता है। उनका लक्ष्य सबसे पहले फिनिश लाइन पार करना होता है।

कैनो स्प्रिंट को 1924 के पेरिस ओलंपिक में प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल किया गया। उसी साल अंतरराष्ट्रीय कैनो फेडरेशन (आईसीएफ) की स्थापना हुई, जिससे खेल के नियम और प्रतियोगिताएं मानकीकृत हुईं।

इसके बाद 1936 के बर्लिन ओलंपिक में यह पूर्ण रूप से ओलंपिक अनुशासन बन गया। 1948 के लंदन ओलंपिक में पहली बार इसमें महिलाओं की प्रतियोगिता हुई। समय के साथ, नावों के डिजाइन, तकनीक और प्रशिक्षण पद्धतियों में बदलाव आए, जिससे यह खेल और भी तेज और रोमांचक बना।

भारत में कैनो स्प्रिंट एक उभरता हुआ खेल है। एशियाई स्तर पर भारतीय खिलाड़ियों ने पदक के करीब प्रदर्शन किए हैं। बुनियादी ढांचे, अंतरराष्ट्रीय अनुभव और बेहतर प्रशिक्षण के साथ, भारत इस खेल में ओलंपिक मेडल अपने नाम कर सकता है। इसके लिए एक दीर्घकालिक रोडमैप की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही नेशनल लीग और जूनियर सर्किट को मजबूत करना होगा।

Point of View

बल्कि यह आदिवासी समुदायों की संस्कृति को भी दर्शाता है। भारत में इस खेल के विकास के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण की आवश्यकता है। यदि सही दिशा में कदम उठाए जाएं, तो भारत इस क्षेत्र में काफी आगे बढ़ सकता है।
NationPress
30/12/2025

Frequently Asked Questions

कैनो स्प्रिंट क्या है?
कैनो स्प्रिंट एक जल क्रीड़ा है जिसमें खिलाड़ी पानी पर कैनो या कयाक का उपयोग करते हुए दूरी तय करते हैं।
कैनो स्प्रिंट की शुरुआत कब हुई थी?
कैनो स्प्रिंट की शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी, जब जॉन मैकग्रेगर ने इसे मान्यता दी।
कैनो स्प्रिंट ओलंपिक में कब शामिल हुआ?
कैनो स्प्रिंट को 1924 के पेरिस ओलंपिक में प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल किया गया था।
भारत में कैनो स्प्रिंट का भविष्य क्या है?
भारत में कैनो स्प्रिंट का भविष्य उज्ज्वल है, यदि उचित प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया जाए।
कैनो और कयाक में क्या अंतर है?
कैनो में एकल ब्लेड पैडल का उपयोग होता है, जबकि कयाक में डबल-ब्लेडेड पैडल का उपयोग किया जाता है।
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