क्या हवा सिंह भारतीय बॉक्सिंग के बादशाह हैं, जिन्होंने लगातार 11 साल जीती नेशनल चैंपियनशिप?

सारांश
Key Takeaways
- हवा सिंह ने 11 बार नेशनल चैंपियनशिप जीती।
- उन्होंने एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीते।
- उनका जन्म हरियाणा में हुआ था।
- उन्होंने 1974 के एशियन गेम्स में फाइनल खेला।
- हवा सिंह ने युवा मुक्केबाजों को प्रशिक्षित किया।
नई दिल्ली, 13 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय बॉक्सिंग के बादशाह के नाम से मशहूर हवा सिंह ने लगातार 11 बार नेशनल चैंपियनशिप जीती है। एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीतने वाले इस बॉक्सर की मेहनत, ताकत और अनुशासन ने उन्हें विश्व स्तर पर एक विशेष पहचान दिलाई।
हवा सिंह का जन्म 16 दिसंबर 1937 को हरियाणा में हुआ था। गुलाम भारत में पैदा होने के कारण उनके रक्त में देशभक्ति की भावना थी। उन्होंने भारत की सेवा करने का संकल्प लिया और 1956 में आर्मी जॉइन की, जब वह केवल 19 वर्ष के थे।
आर्मी में रहते हुए, हवा सिंह ने बॉक्सिंग की शुरुआत की। उनकी मेहनत और सीखने की क्षमता ने उन्हें जल्दी ही इस खेल में पहचान दिलाई। उन्होंने कुछ समय में ही वेस्टर्न कमांड के चैंपियन का खिताब जीता, जब उन्होंने 1960 में सेना के पूर्व चैंपियन मोहब्बत सिंह को हराया।
1962 में जकार्ता में होने वाले एशियन गेम्स में भारत-चीन तनाव के कारण हवा सिंह हिस्सा नहीं ले पाए। हालांकि, उन्होंने बैंकॉक में 1966 और 1970 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।
1966 में, हवा सिंह को उनके शानदार खेल के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1968 में, उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ द्वारा बेस्ट स्पोर्ट्समैन का खिताब मिला।
हालांकि, 1974 के एशियन गेम्स के फाइनल में ईरान के प्रतिद्वंद्वी को हराने के बावजूद, विवादित रेफरी के फैसले के कारण वह गोल्ड से चूक गए।
1980 में हवा सिंह ने बॉक्सिंग से संन्यास लिया और भिवानी में बस गए, जहाँ उन्होंने भिवानी बॉक्सिंग ब्रांच के चीफ कोच के रूप में युवा मुक्केबाजों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। उनके बैच में 10 खिलाड़ी थे, जिनमें से एक राजकुमार सांगवान थे।
हवा सिंह की ख्वाहिश थी कि वह दिग्गज बॉक्सिंग के सितारे मोहम्मद अली का सामना करें, लेकिन यह सपना कभी पूरा नहीं हुआ। 14 अगस्त 2000 को, 62 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
महज 15 दिन बाद उन्हें द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजा जाना था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उनके निधन के बाद, यह पुरस्कार उनकी पत्नी अंगूरी देवी को सौंपा गया।