क्या मोहन बागान एक ऐतिहासिक क्लब है जिसने फुटबॉल को भारत के गर्व का प्रतीक बनाया?

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क्या मोहन बागान एक ऐतिहासिक क्लब है जिसने फुटबॉल को भारत के गर्व का प्रतीक बनाया?

सारांश

मोहन बागान, एक ऐतिहासिक क्लब, जिसने फुटबॉल को भारतीय गर्व का प्रतीक बनाया। इसकी समृद्ध परंपरा और देशभक्ति की भावना इसे अद्वितीय बनाती है। आइए जानें इस क्लब की यात्रा और उपलब्धियों के बारे में!

Key Takeaways

  • मोहन बागान ने भारतीय फुटबॉल की नींव रखी।
  • यह क्लब एक प्रेरणादायक इतिहास रच चुका है।
  • मोहन बागान के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

नई दिल्ली, १४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के प्रसिद्ध क्लब मोहन बागान ने फुटबॉल को केवल एक खेल के रूप में नहीं, बल्कि भारत के गर्व का प्रतीक बना दिया है। इस क्लब की विशेषता उसकी समृद्ध धरोहर, देशभक्ति की भावना और फुटबॉल में उत्कृष्टता है।

वर्ष १८८९ में स्थापित मोहन बागान एशिया के सबसे पुराने फुटबॉल क्लबों में गिना जाता है। साल १९११ में ब्रिटिश टीम पर ऐतिहासिक जीत ने इसे भारतीय गौरव का प्रतीक बना दिया। मोहन बागान अपने अनुशासन, प्रतिभाशाली खिलाड़ियों और प्रशंसकों के गहरे जुड़ाव के लिए जाना जाता है।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने १९वीं सदी की शुरुआत में भारत में अपनी शक्ति स्थापित की। इस दौरान इंग्लैंड में एसोसिएशन फुटबॉल का खेल तेजी से लोकप्रिय हो रहा था।

अंग्रेजों को चमड़े की गेंद पर किक मारते देखकर भारतीयों के बीच इस खेल के प्रति रुचि बढ़ने लगी।

२६ अक्टूबर १८६३ को लंदन में 'फुटबॉल एसोसिएशन' का गठन हुआ, जिसने इंग्लैंड के फुटबॉल को नियंत्रित किया। इस संस्था की स्थापना के बाद इस खेल में कई नियम बनाए गए।

कुछ दस्तावेज बताते हैं कि भारत में पहला फुटबॉल क्लब १८७२ में कलकत्ता एफसी के रूप में स्थापित हुआ था, लेकिन कुछ दस्तावेज इसे पहले एक रग्बी क्लब के रूप में पहचानते हैं, जो १८९४ में फुटबॉल क्लब में बदला।

भारतीय फुटबॉल का श्रेय नागेंद्र प्रसाद सर्वाधिकारी को जाता है, जिन्होंने बंगाल में कई फुटबॉल क्लब स्थापित किए, जिससे भारत में फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ी।

मोहन बागान क्लब की स्थापना १५ अगस्त १८८९ को हुई थी। इसकी शुरुआत ज्योतिंद्र नाथ बसु, भूपेंद्रनाथ बसु, महाराजा दुर्गा चरण लाहा और महाराजा राजेंद्र भूप बहादुर जैसे प्रमुख व्यक्तियों ने की थी।

इस क्लब की पहली बैठक कोलकाता में भूपेंद्रनाथ बसु के घर में हुई थी। इसका पहला मैदान 'मोहन बागान विला' में स्थित था, जिसके कारण क्लब को इसका नाम मिला। एक साल बाद इसे 'मोहन बागान एथलेटिक क्लब' का नाम दिया गया।

साल १८९३ में इस क्लब ने 'कूच बिहार कप' के नाम से अपना पहला टूर्नामेंट आयोजित किया। साल १९०५ में इसी क्लब ने 'कूच बिहार कप' के साथ 'ग्लैडस्टोन कप' भी जीता।

मोहन बागान क्लब ने भारत में फुटबॉल की प्रगति और लोकप्रियता में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई। २९ जुलाई १९११

मोहन बागान क्लब ने भारतीय खिलाड़ियों को पेशेवर फुटबॉल का मंच प्रदान किया और देशभर में फुटबॉल संस्कृति को मजबूत किया है। मोहन बागान के कई दिग्गज खिलाड़ियों ने भारतीय टीम के लिए 'आई-लीग' और 'इंडियन सुपर लीग' (आईएसएल) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

मोहन बागान सुपर जाइंट ने १७ डूरंड कप, ३० कलकत्ता फुटबॉल लीग, २२ आईएफए शील्ड, १४ फेडरेशन कप, १४ रोवर्स कप जीते हैं। इसके अलावा, इस क्लब ने २-२ बार आईएसएल लीग शील्ड और इंडियन सुपर लीग खिताब भी जीते हैं।

Point of View

NationPress
14/10/2025

Frequently Asked Questions

मोहन बागान का स्थापना वर्ष क्या है?
मोहन बागान की स्थापना १५ अगस्त १८८९ को हुई थी।
मोहन बागान क्लब ने पहली बार कब 'आईएफ शील्ड' जीती?
मोहन बागान ने २९ जुलाई १९११ को पहली बार 'आईएफ शील्ड' जीती।
मोहन बागान के कितने प्रमुख कप हैं?
मोहन बागान ने १७ डूरंड कप, ३० कलकत्ता फुटबॉल लीग और अन्य कई टॉप कप जीते हैं।