क्या पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी क्रिकेटर बने? पूनम यादव ने सपना साकार किया

Key Takeaways
- पूनम यादव का संघर्ष
- महिलाओं का खेलों में योगदान
- समाज की रुकावटों को पार करना
- अर्जुन पुरस्कार की उपलब्धि
- क्रिकेट की दुनिया में सफलता
नई दिल्ली, 23 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय समाज में महिलाओं के लिए किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। खेल के क्षेत्र में महिलाओं का आगे आना और भी कठिन होता है।
हालांकि, हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं और महिलाओं को भी खेल के क्षेत्र में अपना नाम बनाने का अवसर मिल रहा है।
अतीत में भी कई खिलाड़ियों ने परिवार और समाज के खिलाफ दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है, जैसे कि पूनम यादव, जो भारतीय महिला क्रिकेट टीम की एक प्रमुख खिलाड़ी हैं।
पूनम यादव का जन्म 24 अगस्त 1991 को मैनपुरी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्हें बचपन से ही क्रिकेट में गहरी रुचि थी और इस खेल में कुछ बड़ा करने का सपना था।
नौ साल की उम्र से उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। हालांकि, सामाजिक दबाव के कारण उनके पिता ने उन्हें क्रिकेट छोड़ने की सलाह दी थी। लेकिन पूनम ने हार नहीं मानी और अंततः पिता को इजाजत देनी पड़ी।
बेहतर तैयारी के लिए पूनम मैनपुरी से आगरा आ गईं और एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में अभ्यास करने लगीं।
2013 में उन्होंने भारतीय महिला टीम के लिए डेब्यू किया। पूनम एक लेग स्पिनर हैं।
2013 से 2022 के बीच पूनम ने 1 टेस्ट में 3, 58 वनडे में 80 और 72 टी20 में 98 विकेट लिए।
पूनम विमेंस प्रीमियर लीग में दिल्ली कैपिटल्स और बिग बैश लीग में ब्रिसबेन हिट के लिए खेल चुकी हैं।
पूनम ने भारत की तरफ से 2017 वनडे विश्व कप और 2018 टी20 विश्व कप में भाग लिया। उन्होंने 2018 में टी20 में झूलन गोस्वामी का रिकॉर्ड तोड़ा था।
क्रिकेट में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें 29 अगस्त 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।