क्या सेपक टाकरा ने दक्षिण-पूर्व एशिया के मछुआरों का खेल विश्व में पहचान बनाई और भारत चैंपियन रहा?

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क्या सेपक टाकरा ने दक्षिण-पूर्व एशिया के मछुआरों का खेल विश्व में पहचान बनाई और भारत चैंपियन रहा?

सारांश

सेपक टाकरा, जो दक्षिण-पूर्व एशिया का एक अद्वितीय खेल है, ने विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। भारत ने इस खेल में अपनी चैंपियनशिप की पहचान बनाई है। जानिए, सेपक टाकरा के इतिहास और इसकी वैश्विक लोकप्रियता के बारे में।

Key Takeaways

  • सेपक टाकरा एक अद्वितीय खेल है जो फुटबॉल और वॉलीबॉल का मिश्रण है।
  • इस खेल में हाथों का उपयोग नहीं किया जाता है।
  • भारत ने इस खेल में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।
  • सेपक टाकरा के कई इवेंट्स हैं, जैसे टीम इवेंट और रेगू।
  • इस खेल में खिलाड़ियों की तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है।

नई दिल्ली, 26 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सेपक टाकरा दक्षिण-पूर्व एशिया का एक ऐसा रोमांचक और कलात्मक खेल है, जिसमें वॉलीबॉल और फुटबॉल का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। इस खेल में फुर्ती, संतुलन, ताकत और शानदार एथलेटिक कौशल का प्रदर्शन होता है, जहां खिलाड़ी हाथों का उपयोग किए बिना पैर, घुटने, छाती और सिर से गेंद को नेट के पार भेजते हैं।

सेपक टाकरा मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस में अत्यधिक प्रचलित है, जिसे भारत ने भी अपनाया। इसे एशियन गेम्स में आधिकारिक खेल का दर्जा प्राप्त है। धीरे-धीरे यह खेल विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना रहा है। दक्षिण पूर्व एशिया के बाहर, यह खेल यूएसए और कनाडा जैसे पश्चिमी देशों में भी लोकप्रियता हासिल कर रहा है।

14वीं शताब्दी के आसपास, मलय समुदाय के मछुआरे जब मछली पकड़कर लौटते थे, तो मनोरंजन के लिए पत्तों की गेंद बनाकर खेलते थे। इस खेल में थाईलैंड और आस-पास के देशों के लोग भी शामिल होते थे। धीरे-धीरे, गेंद बनाने के लिए पत्तों की जगह रतन की पट्टियों का उपयोग होने लगा, और बाद में सिंथेटिक फाइबर या सिंथेटिक रबर का इस्तेमाल किया जाने लगा। 1940 के दशक में इस खेल से जुड़े औपचारिक नियम भी पेश किए गए।

धीरे-धीरे यह खेल दक्षिण एशिया में फैल गया। मलेशिया में इसे सेपक, और थाईलैंड में टाकरा के नाम से जाना जाता है। मलय भाषा में 'सेपक' का अर्थ 'किक' है, जबकि थाई भाषा में 'टाकरा' का मतलब 'गेंद को हिट करना' है।

हालांकि, कुछ देशों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मलेशिया में इसे 'सेपक रागा', फिलिपींस में 'सिपा', और म्यांमार में 'चिने' कहा जाता है। भारत में इसे 'किक वॉलीबॉल' भी कहा जाता है।

भारत में साल 1980 में पहली बार इस खेल को प्रस्तुत किया गया। इस बीच, नागपुर शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय में खेल प्रेमियों की एक बैठक हुई और सेपक टाकरा फेडरेशन ऑफ इंडिया के गठन पर विचार किया गया।

नई दिल्ली में आयोजित 1982 के एशियन गेम्स के दौरान कमल सिंह स्टेडियम में खेले गए प्रदर्शनी मैच के बाद इस खेल को अन्य शहरों में भी आयोजित किया गया। अंततः, साल 1985 में दिल्ली में 'सेपक टाकरा फेडरेशन ऑफ इंडिया' का गठन हुआ, जो वर्तमान में 29 राज्य एसोसिएशन फेडरेशन से संबद्ध है।

साल 1998 में भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन ने सेपक टाकरा फेडरेशन ऑफ इंडिया को मान्यता दी। इसी वर्ष बैंकॉक में आयोजित किंग्स कप विश्व सेपक टाकरा चैंपियनशिप में भारतीय पुरुष टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता, जबकि महिला टीम ने सिल्वर जीता। 1999 में भारतीय पुरुष टीम ने रेगू इवेंट में गोल्ड जीता।

साल 2025 में पटना में सेपक टाकरा वर्ल्ड कप का आयोजन हुआ, जिसमें भारतीय पुरुष रेगु टीम ने फाइनल में जापान को हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

भारतीय दल ने इस विश्व कप में कुल 7 मेडल जीते, जिसमें महिला युगल टीम का सिल्वर भी था। इसके अलावा पुरुष युगल टीम, महिला रेगु टीम, मिश्रित क्वाड टीम, महिला क्वाड टीम और पुरुष क्वाड टीम के ब्रॉन्ज मेडल भी शामिल थे।

सेपक टाकरा के पांच प्रमुख इवेंट हैं: टीम इवेंट, रेगू, क्वाड, डबल्स और मिक्सड डबल्स। हर खिलाड़ी एक खास पोजीशन पर खेलता है। 'टेकॉन्ग' कोर्ट के सबसे पीछे खड़ा होता है, जबकि एक इनसाइड लेफ्ट और एक इनसाइड राइट कोर्ट के दोनों ओर नेट के पास खेलते हैं।

इस खेल में 3 खिलाड़ी कोर्ट पर नेट के आर-पार अपनी विरोधी टीम के खिलाफ मुकाबला करते हैं। सेपक टाकरा के कोर्ट का डाइमेंशन 13.4 x 6.1 मीटर होता है। पुरुषों के लिए कोर्ट के सेंटर में 1.5 मीटर की ऊंचाई पर नेट होता है, जबकि महिलाओं के मुकाबलों में यह 1.42 मीटर होता है।

सिंथेटिक मटीरियल से बनी गेंद में 12 छेद और 20 इंटरसेक्शन होने चाहिए। यह गेंद एक रंग की या बहुरंगी हो सकती है, लेकिन ऐसा रंग नहीं होना चाहिए जिससे खिलाड़ियों को परेशानी हो।

अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार पुरुषों के खेल में गेंद का वजन 170-180 ग्राम होना चाहिए, जबकि परिधि 42-44 सेंटीमीटर होनी चाहिए। महिलाओं के मुकाबलों में गेंद का वजन 150-160 ग्राम होना चाहिए, जबकि परिधि 43-45 सेंटीमीटर होनी अनिवार्य है।

जब भी विरोधी टीम गलती करती है तो दूसरी टीम को एक अंक मिलता है। इसमें गेंद का हाथ से छूना, गेंद का विरोधी टीम के हाफ में न जाना, गेंद का नेट या कोर्ट की बाउंड्री के बाहर गिरना, लगातार 3 से ज्यादा बार गेंद खेलना, और सर्विस करते समय टेकॉन्ग का जमीन से कूदना जैसी गलतियां शामिल हैं।

भारत ने सेपक टाकरा में पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रगति की है। खेल मंत्रालय ने इसे बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं। सेपक टाकरा फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष किशोर कुमार बिष्ट ने राष्ट्र प्रेस को बताया कि फेडरेशन समय-समय पर इंटरनेशनल कैंप लगाती है। इसके लिए सरकार फंड जारी करती है, या साई इसका प्रबंध करती है। खिलाड़ियों के लिए विदेश में भी कैंप लगाए जाते हैं। सरकार इसके लिए खिलाड़ियों को हरसंभव मदद कर रही है।

खेल मंत्रालय से नेशनल और इंटरनेशनल स्तर के खिलाड़ियों पर काफी खर्च किया जा रहा है। तीन कैटेगरी में नेशनल लेवल के टूर्नामेंट होते हैं- सब जूनियर नेशनल चैंपियनशिप, इंटरनेशनल चैंपियनशिप और सीनियर नेशनल चैंपियनशिप। इन सभी टूर्नामेंट के लिए सरकार फेडरेशन को फंड मुहैया करवाती है।

Point of View

बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी दिलाई है। भारतीय खिलाड़ियों ने इस खेल में उत्कृष्टता प्रदर्शित की है, जो हमारे देश की खेल प्रतिभा को दर्शाता है। हमें इस दिशा में और प्रयास करने की आवश्यकता है।
NationPress
26/12/2025

Frequently Asked Questions

सेपक टाकरा का इतिहास क्या है?
सेपक टाकरा का इतिहास 14वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब मलय मछुआरे मनोरंजन के लिए पत्तों की गेंदों से खेलते थे।
भारत में सेपक टाकरा कब शुरू हुआ?
भारत में सेपक टाकरा पहली बार 1980 में प्रस्तुत किया गया।
सेपक टाकरा के प्रमुख इवेंट कौन से हैं?
सेपक टाकरा के प्रमुख इवेंट हैं: टीम इवेंट, रेगू, क्वाड, डबल्स, और मिक्सड डबल्स।
सेपक टाकरा में कितने खिलाड़ी होते हैं?
सेपक टाकरा में आमतौर पर 3 खिलाड़ी कोर्ट पर होते हैं।
सेपक टाकरा की गेंद का वजन क्या होता है?
पुरुषों के लिए गेंद का वजन 170-180 ग्राम और महिलाओं के लिए 150-160 ग्राम होना चाहिए।
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