क्या 1965 के युद्ध से मिले सबक आज भी रक्षा नीति को दिशा दे रहे हैं?

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क्या 1965 के युद्ध से मिले सबक आज भी रक्षा नीति को दिशा दे रहे हैं?

सारांश

1965 के भारत-पाक युद्ध ने न केवल सैनिक दृढ़ता का परिचय दिया बल्कि आज की रणनीतिक सोच को भी प्रभावित किया है। इस पर एक संगोष्ठी में चर्चा हुई कि कैसे इस युद्ध के सबक आज भी हमारे सुरक्षा दृष्टिकोण को आकार दे रहे हैं।

Key Takeaways

  • 1965 के युद्ध ने हमारी सैन्य रणनीति को नया आकार दिया।
  • राष्ट्रीय इच्छाशक्ति की परीक्षा का महत्व।
  • आत्मनिर्भरता और रक्षा सुधार की आवश्यकता।
  • साइबर और सूचना युद्ध का उभरता स्वरूप।
  • स्वदेशी अनुसंधान और निजी क्षेत्र की भागीदारी।

नई दिल्ली, 9 सितंबर (राष्ट्र प्रेस) 1965 में हुए भारत–पाकिस्तान युद्ध के 60 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस युद्ध से मिले सबक आज भी भारत की सामरिक सोच और रक्षा आधुनिकीकरण के केंद्र में हैं। इस अवसर पर मंगलवार को चिंतन रिसर्च फाउंडेशन (सीआरएफ) और वैली ऑफ वर्ड्स (वीओडब्ल्यू) ने एक संयुक्त संगोष्ठी ‘1965 का युद्ध: स्मरण और भविष्य की योजना’ का आयोजन किया।

दिल्ली में आयोजित इस संगोष्ठी में युद्ध के दिग्गज, वर्तमान सैन्य अधिकारी, राजनयिक और कई विद्वान शामिल हुए जिन्होंने युद्ध से मिले महत्वपूर्ण सबक पर चर्चा की। विशेषज्ञों का मानना है कि 1965 का युद्ध केवल हथियारों का टकराव नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय इच्छाशक्ति की परीक्षा भी थी। उस समय भारत संसाधनों और तकनीकी कमी से जूझ रहा था। 1962 में ही चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ था। इस बीच पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ की और उसके बाद ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ के तहत अखनूर को निशाना बनाया।

भारत ने साहसिक निर्णय लेते हुए सीमा संघर्ष को पंजाब के मोर्चों — लाहौर, सियालकोट और बाड़मेर तक विस्तारित किया। इस रणनीतिक कदम ने पाकिस्तान की आक्रामकता को ध्वस्त कर दिया और युद्ध में भारत की स्थिति को मजबूत कर दिया। 23 सितंबर 1965 को युद्धविराम और जनवरी 1966 में ताशकंद समझौते ने संघर्ष को समाप्त किया, इसके बावजूद राजनीतिक विवाद बरकरार रहा।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, सीआरएफ अध्यक्ष शिशिर प्रियदर्शी ने कहा कि 1965 की विजय आज भी भारत की रणनीतिक सोच को प्रेरित करती है। वहीं, वीओडब्ल्यू अध्यक्ष संजीव चोपड़ा ने इसे एक निर्णायक मोड़ बताया। उन्होंने कहा कि सीमा पार जाकर जवाब देने की भारत की तत्परता ने युद्ध में सफलता सुनिश्चित की। पैनल चर्चा में वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने विचार साझा किए। लेफ्टिनेंट जनरल पीजेएस पन्नू ने कहा कि 1965 से मिली दृढ़ता, एकता और तैयारी की सीख आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि भारत जटिल सीमाई चुनौतियों का सामना कर रहा है।

वक्ताओं ने माना कि यद्यपि इस युद्ध ने कई कमियां उजागर कीं, लेकिन इसी ने आत्मनिर्भरता और रक्षा सुधार की प्रक्रिया को जन्म भी दिया। अपने समापन भाषण में लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) अता हसनैन, पूर्व जीओसी 15 कॉर्प्स व राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य ने कहा, “इतिहास केवल स्मरण के लिए नहीं होता, इसका उद्देश्य भविष्य की तैयारी करना भी होता है। थिएटराइजेशन, संयुक्त कमान और वास्तविक समय में निर्णय लेना अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है, ताकि हम आने वाले युद्धों में विजय मिल सकें।”

चर्चा में इस बात पर भी जोर दिया गया कि युद्ध का स्वरूप अब पूरी तरह बदल चुका है। जल, थल और वायु के साथ-साथ आज के युद्धक्षेत्र में साइबर, अंतरिक्ष और सूचना युद्ध भी शामिल हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मानव रहित विमान प्रणालियां और सटीक हथियार वैश्विक सैन्य रणनीतियों को बदल रहे हैं। वक्ताओं ने स्वदेशी अनुसंधान और निजी क्षेत्र की भागीदारी को भविष्य की जरूरत बताते हुए ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया। सम्मेलन का साझा निष्कर्ष यह रहा कि 1965 का युद्ध केवल साहस और बलिदान की गाथा नहीं था, बल्कि दूरदृष्टि का भी प्रतीक था। इसने भारत को यह याद दिलाया कि संप्रभुता की रक्षा केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि सतत सजगता, तैयारी और रक्षा में निवेश से ही संभव है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि 1965 के युद्ध ने केवल सैन्य क्षमताओं को उजागर नहीं किया, बल्कि यह हमें आत्मनिर्भरता और रणनीतिक तैयारी की आवश्यकता को भी समझाता है। यह युद्ध हमारे लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि संप्रभुता की रक्षा के लिए सतत सजगता आवश्यक है।
NationPress
09/09/2025

Frequently Asked Questions

1965 के युद्ध का मुख्य उद्देश्य क्या था?
1965 के युद्ध का मुख्य उद्देश्य कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को समाप्त करना और अपनी संप्रभुता की रक्षा करना था।
इस युद्ध से क्या सबक मिले हैं?
इस युद्ध से हमें राष्ट्रीय इच्छाशक्ति, एकता और तैयारी का महत्व समझ में आया।
क्या 1965 का युद्ध आधुनिक रणनीति पर असर डालता है?
हां, 1965 का युद्ध आज भी हमारी रणनीतिक सोच और रक्षा आधुनिकीकरण को प्रभावित कर रहा है।