क्या 26 अक्टूबर 1947 का दिन जम्मू-कश्मीर के लिए ऐतिहासिक था?
सारांश
Key Takeaways
- 26 अक्टूबर 1947 का दिन जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय का प्रतीक है।
- महाराजा हरि सिंह के निर्णय ने भारतीय एकता को मजबूत किया।
- 'ऑपरेशन गुलमर्ग' ने भारत-पाक संबंधों में तनाव बढ़ाया।
- जनमत संग्रह की प्रक्रिया कभी पूरी नहीं हो सकी।
- यह घटना आज भी कश्मीर विवाद का कारण बनी हुई है।
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। 26 अक्टूबर 1947 का दिन इतिहास के पन्नों में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में अंकित है, जब जम्मू-कश्मीर ने भारत के साथ अपने भाग्य को जोड़ा। यह केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक ऐसा क्षण था जिसने स्वतंत्र भारत की भौगोलिक और भावनात्मक एकता को मजबूती प्रदान की। महाराजा हरि सिंह का यह निर्णय आज भी भारतीय अखंडता और एकता का प्रतीक माना जाता है।
15 अगस्त 1947, जब भारत ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की, तब लोगों की आंखों में आशा की चमक थी, लेकिन इसके साथ कई अनिश्चितताओं का भी सामना करना पड़ा। उस समय भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी देश की सैकड़ों रियासतों के भविष्य का निर्धारण करना। इन रियासतों को यह विकल्प दिया गया कि वे भारत में शामिल हों, पाकिस्तान में जाएं या स्वतंत्र रहें। इन्हीं रियासतों में से एक Jammu-Kashmir थी, जिसके शासक महाराजा हरि सिंह थे।
महाराजा हरि सिंह की इच्छा थी कि Jammu-Kashmir एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बना रहे, न कि भारत या पाकिस्तान के अधीन। लेकिन इतिहास की धारा ने कुछ और ही तय किया। पाकिस्तान के लिए यह विचार अस्वीकार्य था। यदि Jammu-Kashmir भारत के साथ जुड़ जाता, तो मोहम्मद अली जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत की नींव हिल जाती।
संस्कृति मंत्रालय के पूर्व सचिव राघवेंद्र सिंह के अनुसार, "अगर Jammu-Kashmir की रियासत ने भारत को चुना, तो यह जिन्ना के सिद्धांत को पूरी तरह चुनौती देता।"
इसलिए पाकिस्तान ने एक षड्यंत्र रचा, जिसे 'ऑपरेशन गुलमर्ग' कहा गया, जो भारत-पाक संबंधों में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने Jammu-Kashmir पर हमला किया। यह कोई साधारण घटना नहीं थी, बल्कि यह कबायली लड़ाकों के वेश में आए पाकिस्तानी सैनिकों का संगठित आक्रमण था। उन्होंने सीमाएं पार कीं, कस्बों पर कब्जा किया और फिर लूट, बलात्कार, आगजनी और हत्या का एक भयावह सिलसिला शुरू किया। बारामूला और उसके आसपास के क्षेत्र में तबाही का मंजर था। Jammu-Kashmir जल रहा था और महाराजा हरि सिंह के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था।
राजा हरि सिंह ने तुरंत भारत से मदद की गुहार लगाई। उस समय भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने स्पष्ट कहा कि भारत तभी सैनिक सहायता भेज सकता है, जब Jammu-Kashmir औपचारिक रूप से भारत में शामिल होने का निर्णय ले। यही वह क्षण था जब इतिहास ने एक नया मोड़ लिया।
26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने Jammu के अमर पैलेस में भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। यही वह दिन था जब कश्मीर के आकाश में पहली बार भारतीय तिरंगा फहराया गया, यह एक प्रतीक था कि अब यह भूमि भारत का हिस्सा बन गई है।
हालांकि, यहां से एक विवाद की शुरुआत भी हुई। तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने Jammu-Kashmir में जनमत संग्रह की बात की थी। माउंटबेटन ने एक पत्र में लिखा, "मेरी सरकार की इच्छा है कि जैसे ही Jammu-Kashmir में कानून-व्यवस्था बहाल हो जाए और उसकी धरती हमलावरों से मुक्त हो जाए, राज्य के विलय का प्रश्न जनता के समक्ष प्रस्तुत करके सुलझा लिया जाए।"
कहा जाता है कि यही टिप्पणी आगे चलकर कश्मीर विवाद की जड़ बनी। लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर भारत सरकार ने बाद में जनमत संग्रह की बात कही, ताकि कश्मीरी जनता यह तय कर सके कि वे भारत, पाकिस्तान या एक स्वतंत्र राज्य का हिस्सा बनना चाहते हैं। लेकिन यह जनमत संग्रह कभी नहीं हो सका। पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम समझौते का उल्लंघन और लगातार हस्तक्षेप ने इस प्रक्रिया को असंभव बना दिया। यही मुद्दा आगे चलकर भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद का कारण बना, जो आज तक अनसुलझा है।