क्या 83 साल पहले 'भारत छोड़ो आंदोलन' ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में मदद की थी?

सारांश
Key Takeaways
- भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।
- महात्मा गांधी का 'करो या मरो' का नारा जनता में जोश भरने वाला था।
- महिलाओं ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
- यह आंदोलन भारत की स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
- इसने भविष्य की भारतीय राजनीति की नींव रखी।
नई दिल्ली, 8 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। अगस्त का महीना भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 'भारत छोड़ो' जैसे क्रांतिकारी आंदोलन ने स्वतंत्रता की दिशा में एक नई रेखा खींची थी। 'करो या मरो' के नारे के साथ देश के महान नायकों ने 8 अगस्त को अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए यह आंदोलन प्रारंभ किया, जिसे आज 83 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस आंदोलन की गाथा अनगिनत गुमनाम नायकों से भरी हुई है।
साल 1942 में जब विश्व में भयंकर युद्ध की खबरें फैली हुई थीं, भारत भी अपने सदियों पुराने गुलामी के बंधनों से मुक्त होने की कोशिश में था। इसी समय, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स ने भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव पेश किया। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे नायकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज़ 'पूर्ण स्वराज' की मांग कर रही थी। ऐसे में, 8 अगस्त 1942 की पूर्व संध्या पर 'भारत छोड़ो आंदोलन' का आगाज हुआ। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन की नींव रखी।
इस आंदोलन का विकास उस समय हुआ जब विश्व में उथल-पुथल थी। जापानी सेना भारत की सीमाओं की ओर बढ़ रही थी, और चीन, अमेरिका और ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने से पहले भारत की स्थिति को लेकर चिंतित थे। मार्च 1942 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने क्रिप्स को भारत भेजा, लेकिन कांग्रेस कार्य समिति ने इसे अस्वीकार कर दिया। इसके बाद, गांधी जी ने 7 और 8 अगस्त 1942 को मुंबई में 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित किया।
महात्मा गांधी ने गोवालिया टैंक मैदान में लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'यह एक छोटा-सा मंत्र है, इसे अपने हृदय में अंकित कर लें।' अरुणा आसफ अली ने तिरंगा फहराकर आंदोलन की आधिकारिक घोषणा की। इस आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी भी उल्लेखनीय थी, जहाँ मातंगिनी हाजरा और सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने की कोशिश की, लेकिन यह स्पष्ट था कि भारत की स्वतंत्रता की मांग को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। 'भारत छोड़ो आंदोलन' ने भविष्य की राजनीति के लिए भी रास्ता तैयार किया।