क्या कुड़मी जाति की मांग के खिलाफ गोलबंद हुए आदिवासी संगठन?

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क्या कुड़मी जाति की मांग के खिलाफ गोलबंद हुए आदिवासी संगठन?

सारांश

रांची में हजारों आदिवासी लोगों ने कुड़मी समाज की आदिवासी दर्जे की मांग के विरोध में एक विशाल आक्रोश रैली निकाली। इस रैली में आदिवासी संगठनों ने एकजुटता दिखाई और अपनी पहचान एवं अधिकारों की रक्षा की।

Key Takeaways

  • आदिवासी संगठन कुड़मी मांग के खिलाफ एकजुट हुए।
  • रैली में हजारों लोग शामिल हुए।
  • नेताओं ने कुड़मी मांग को गलत बताया।
  • आदिवासी पहचान की रक्षा का संकल्प।
  • राजनीतिक लाभ के लिए कुड़मी नेताओं पर आरोप।

रांची, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड में कुड़मी समुदाय द्वारा आदिवासी दर्जे की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के बीच अब आदिवासी संगठन खुलकर इसके विरोध में आ गए हैं। रविवार को रांची में राज्य के विभिन्न जिलों से आए हजारों आदिवासी स्त्री-पुरुषों ने इस मांग के खिलाफ एक विशाल आक्रोश रैली निकाली।

मोरहाबादी से पद्मश्री रामदयाल मुंडा फुटबॉल स्टेडियम तक निकले इस मार्च में पारंपरिक पोशाक, तीर–धनुष, भाला, हंसिया और सरना झंडे के साथ आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हुए। रैली के बाद आयोजित जनसभा में वक्ताओं ने कहा, “कुड़मी समाज की यह मांग हमारी पहचान और संविधान प्रदत्त आरक्षण अधिकारों पर सीधे हमला है, जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा, “यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है। आदिवासी कमजोर नहीं हैं, हम अपने हक के लिए एकजुट हैं। ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट और अदालतों ने पहले ही कुड़मियों की मांग खारिज कर दी है, फिर भी कुछ लोग वोट की राजनीति के लिए इसे भड़का रहे हैं।”

नेताओं ने कहा कि कुड़मी समाज का दावा पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा, “कुड़मी, कुरमी और महतो- तीनों एक ही हैं और कभी आदिवासी नहीं थे। यदि इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया तो पूरे देश में आदिवासी समाज के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा।”

वक्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि कुड़मी नेताओं का मकसद केवल राजनीतिक लाभ उठाना है। उन्होंने कहा, “पिछले साल कुड़मी समाज ने रेल रोको आंदोलन किया था, लेकिन एक भी केस दर्ज नहीं हुआ। अब ये लोग संविधान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।”

रैली में शामिल आदिवासी महिलाओं ने कहा, “झारखंड की आदिवासी महिलाएं शेरनी हैं, हम अपना हक और पहचान किसी को नहीं छिनने देंगे।” इस दौरान जेएलकेएम के विधायक जयराम महतो और देवेंद्रनाथ महतो के खिलाफ नाराजगी भी देखी गई। इस 'आदिवासी अस्तित्व बचाओ आक्रोश महारैली' का आयोजन आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के बैनर तले किया गया था।

इसमें केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी नारी सेना, आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा समिति, आदिवासी एकता मंच, आदिवासी अधिकार मंच सहित कई संगठनों के सदस्य शामिल हुए। रैली के दौरान 'हमारा हक नहीं छीनने देंगे' और 'आदिवासी एकता जिंदाबाद' के नारे गूंजते रहे।

Point of View

यह स्पष्ट है कि आदिवासी समुदाय को अपने हक और पहचान की रक्षा के लिए एकजुट होना आवश्यक है। कुड़मी जाति की मांग पर उठे सवालों की गंभीरता को समझते हुए, यह देखना महत्वपूर्ण है कि कैसे यह मुद्दा पूरे देश के आदिवासी समाज को प्रभावित कर सकता है।
NationPress
12/10/2025

Frequently Asked Questions

कुड़मी जाति की मांग का क्या अर्थ है?
कुड़मी जाति की मांग का अर्थ है कि उन्हें आदिवासी दर्जे का लाभ मिले, जो आदिवासी समुदाय की पहचान को प्रभावित कर सकता है।
आदिवासी संगठनों की क्या प्रतिक्रिया है?
आदिवासी संगठनों ने इस मांग का विरोध किया है और इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताया है।
रैली में शामिल संगठनों का नाम क्या है?
रैली में केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी नारी सेना, आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा समिति और अन्य संगठनों के सदस्य शामिल हुए।
क्या कुड़मी समुदाय का दावा सही है?
नेताओं के अनुसार, कुड़मी समुदाय का दावा गलत है और वे कभी आदिवासी नहीं रहे।
इस रैली का मुख्य उद्देश्य क्या था?
रैली का मुख्य उद्देश्य आदिवासी पहचान की रक्षा और कुड़मी मांग के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शित करना था।