क्या अभिनव बिंद्रा ने अपने घर पर शूटिंग रेंज बनाकर ओलंपिक गोल्ड जीता?

सारांश
Key Takeaways
- अभिनव बिंद्रा ने अपने घर पर शूटिंग रेंज बनाई।
- वह 2008 बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड मेडल विजेता हैं।
- उन्होंने 15 साल की उम्र में कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लिया।
- अभिनव बिंद्रा ने कई पुरस्कार जीते हैं।
- उन्होंने भारतीय शूटिंग को नई पहचान दी है।
नई दिल्ली, 27 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के अद्वितीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में देश को गोल्ड मेडल दिला कर इतिहास रचा था। अभिनव ओलंपिक में व्यक्तिगत गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बने, जिन्होंने कई वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन गेम्स में देश का नाम रोशन किया।
28 सितंबर 1982 को देहरादून में जन्मे अभिनव ने बचपन में टेलीविजन पर शूटर्स को देखकर निशानेबाज बनने का संकल्प लिया।
शूटिंग एक महंगा खेल है, लेकिन पिता अपजीत बिंद्रा ने बेटे की रुचि को देखते हुए काफी निवेश किया। उन्होंने घर पर ही अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार शूटिंग रेंज बनाई ताकि बेटे को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े। जर्मनी से कुछ उपकरण भी मंगवाए गए।
जब अभिनव बिंद्रा महज 15 वर्ष के थे, उन्होंने 1998 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लिया। वह साल 2000 के सिडनी ओलंपिक के सबसे कम उम्र के भारतीय प्रतिभागी बने।
वर्ष 2000 में उन्हें 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया और एक वर्ष बाद 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' से नवाजा गया। उस समय अभिनव इस पुरस्कार को पाने वाले सबसे युवा एथलीट थे।
इसी वर्ष उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिताओं में 6 गोल्ड जीते। 2002 में युवा अभिनव ने 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स की 10 मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते।
2004 के एथेंस ओलंपिक में, उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा के क्वालिफिकेशन राउंड में नया ओलंपिक रिकॉर्ड बनाया, लेकिन फाइनल में प्रदर्शन नहीं कर सके।
चोट के कारण अभिनव बिंद्रा एक साल तक इस खेल से दूर रहे, लेकिन 2006 में आईएसएसएफ वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता।
2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालीफाई होने के बाद, अभिनव ने अपनी तैयारियों को तेज कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि ओलंपिक से एक हफ्ते पहले उन्होंने सलाहकार कोच यूवे रिस्तेरर से कमांडो ट्रेनिंग ली।
अभिनव ने चंडीगढ़ में एक मैरिज हॉल किराए पर लिया और उसमें शूटिंग रेंज स्थापित कर कड़ी मेहनत की। अंततः उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने 2008 बीजिंग ओलंपिक में पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में गोल्ड जीतकर इतिहास रचा।
'गोल्डन ब्वॉय' को 2009 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। 2010 में अभिनव ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गगन नारंग के साथ 10 मीटर युगल स्पर्धा में गोल्ड जीता। इसके साथ ही व्यक्तिगत स्पर्धा में सिल्वर मेडल पर निशाना साधा।
2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने एक और गोल्ड जीता और इसी वर्ष एशियन गेम्स में दो ब्रॉन्ज मेडल जीते, जिसके साथ 2016 रियो ओलंपिक का टिकट मिला। अभिनव अपने अंतिम ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहे।
शूटिंग से संन्यास लेने के बाद अभिनव बिंद्रा ने बिजनेस पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया और कोलोराडो यूनिवर्सिटी से बीबीए की डिग्री प्राप्त की। इसके साथ ही उन्होंने अभिनव बिंद्रा फाउंडेशन नाम से एक एनजीओ शुरू किया, जिसका उद्देश्य एथलीट्स को निखारना है।
अंतरराष्ट्रीय खेल शूटिंग महासंघ और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के एथलीट आयोग का हिस्सा रहे अभिनव बिंद्रा ने भारतीय शूटिंग को नई पहचान और दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके प्रयासों ने भारत में शूटिंग को लोकप्रिय बनाने के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं की आवश्यकता को भी बढ़ावा दिया है।