क्या आप जानते हैं अहोबिलम मंदिर में भगवान नरसिंह के नौ रूपों की पूजा होती है?
सारांश
Key Takeaways
- अहोबिलम मंदिर में भगवान नरसिंह के नौ रूपों की पूजा होती है।
- यह मंदिर प्राचीन वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।
- गाय यहाँ आस्था का प्रतीक है और इसका विशेष महत्व है।
- मंदिर तक पहुँचने के लिए कठिन रास्ते का सामना करना पड़ता है।
- यहाँ के सभी नौ रूप अलग-अलग वंशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नई दिल्ली, 14 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह को शक्ति और शत्रुओं पर विजय का प्रतीक माना जाता है।
कहा जाता है कि नरसिंह भगवान के दर्शन से भक्त भयमुक्त होते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान नरसिंह जिस खंभे को फाड़कर प्रकट हुए थे, उसके अवशेष आज भी इस अद्भुत मंदिर में मौजूद हैं? हम बात कर रहे हैं अहोबिलम मंदिर की।
अहोबिलम मंदिर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के पास अल्लागड्डा मंडल के नल्लामाला पहाड़ी जंगलों में स्थित है। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर बना है, जिसके कारण श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए कठिन रास्ते से गुजरना पड़ता है।
मान्यता है कि भगवान इस स्थान पर उग्र नरसिंह रूप में प्रकट हुए थे, जो नरसिंह का सबसे भयंकर रूप है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ भगवान नरसिंह के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह विश्व का पहला मंदिर है जहाँ नरसिंह भगवान के नौ रूपों का वर्णन मिलता है। ये सभी नौ मंदिर 5 किलोमीटर की परिधि में स्थित हैं और भक्तों को यहाँ आकर नौ मंदिरों के दर्शन कर परिक्रमा भी करनी होती है।
मंदिर की वास्तुकला बहुत प्राचीन है और नौ मंदिरों में से कुछ गुफाओं के अंदर बने हैं, जो सुख और शांति प्रदान करते हैं। निचले अहोबिलम (पहाड़ पर बनी गुफा) में दो मंदिर और ऊपरी अहोबिलम में चार मंदिर हैं। दो अन्य मंदिर घने जंगल के अंदर हैं और एक बीच में है। इन नौ मंदिरों में से छत्रवता नरसिंह स्वामी का सबसे प्राचीन मंदिर है, जिन्हें नरसिंह के सभी नौ देवताओं में सबसे बड़े देवता के रूप में पूजा जाता है।
इस मंदिर में भगवान नरसिंह की आठ भुजाओं वाली मूर्ति है जो हिरण्यकश्यप के वध के दृश्य को दर्शाती है। मंदिर में एक पुराने पत्थर के अवशेष हैं, जिसे उस खंभे से जोड़ा जाता है, जहाँ से भगवान प्रकट हुए थे।
मंदिर में एक गाय भी आती है, जो भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है। भक्तों के अनुसार गाय रोजाना एक निश्चित समय पर मंदिर में आती है और मंदिर के पुजारी गाय की पूजा करते हैं और भोजन के लिए प्रसाद भी देते हैं।
माना जाता है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है और यह गाय भगवान नरसिंह की आस्था का प्रतीक है। नौ मंदिरों में नरसिंह भगवान भार्गव नरसिंह स्वामी, योगानंद नरसिंह स्वामी, छत्रवता नरसिंह स्वामी, अहोबिला नरसिंह स्वामी, क्रोडकारा (वराह) नरसिंह स्वामी, करंज नरसिंह स्वामी, मालोला नरसिंह स्वामी, ज्वाला नरसिंह स्वामी और पावना नरसिंह स्वामी के रूपों में विराजमान हैं। सभी नौ रूप अलग-अलग वंशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।