क्या चीन पर निर्भरता से उद्योगों पर संकट है?

सारांश
Key Takeaways
- चीन पर बढ़ती निर्भरता भारतीय उद्योगों के लिए संकट का कारण बन रही है।
- बेरोजगारी के बढ़ने से लोगों में आक्रोश बढ़ सकता है।
- सरकार की नीतियों पर सवाल उठते हैं जब चीन का अतिक्रमण बढ़ता है।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाना आवश्यक है।
- जनता को सचाई समझने की जरूरत है।
लखनऊ, 31 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री के चीन दौरे पर भाजपा के खिलाफ तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि चीन से आने वाले सामानों पर भारत की बढ़ती निर्भरता ने देश के उद्योगों, कारखानों और दुकानों को गंभीर नुकसान पहुँचाया है, जिससे बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि तथाकथित आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और चीनी सामान के बहिष्कार के भाजपाई जुमलों का चिंताजनक सच यह है कि चीन से आने वाले सामानों पर जिस तरह भारत की निर्भरता बढ़ रही है, उसका बुरा प्रभाव हमारे उद्योगों, कारखानों और दुकानों के कामकाज पर पड़ा है। इससे बेरोजगारी भी तेजी से बढ़ रही है।
उन्होंने आगे लिखा कि भाजपा को चीनी चाल की क्रोनोलॉजी समझनी चाहिए। पहले चीन अपना माल भारत के बाज़ारों में भरेगा। इससे चीन पर निर्भरता इतनी बढ़ जाएगी कि उनकी हर गलत हरकत को नजरअंदाज करने के लिए भाजपाई मजबूर हो जाएंगे। सपा मुखिया ने लिखा कि उसके बाद चीन हमारे उत्पादों और उद्योगों को धीरे-धीरे बंद करने के कगार तक ले जाएगा। उसके बाद मनमाने दाम पर हर चीज़ की सप्लाई करेगा।
अखिलेश यादव ने कहा कि उसके बाद महंगाई और बेरोजगारी में वृद्धि होगी। जब महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी, तो सरकार के खिलाफ लोगों का आक्रोश भी कई गुना बढ़ जाएगा। इसके बाद दूसरों के सहारे चल रही, बिना बहुमत की भाजपा की सरकार और भी कमजोर होकर लड़खड़ा जाएगी।
उन्होंने कहा कि उसके बाद खुद लड़खड़ाती भाजपा की सरकार चीन के अतिक्रमण को चुनौती नहीं दे पाएगी। इसके बाद हमारी भूमि पर चीन का कब्जा और बढ़ेगा। भाजपा फिर कहेगी कि “अगर ये बात ‘ड्रोनवालों’ को समझ नहीं आ रही है, तो उत्तर प्रदेश में विराजमान ‘बुलडोजर’ वाले प्रवासी जी ही यह सच्चाई समझकर जवाब दें कि चीन ने हमारी कितनी जमीन हड़प ली है।”
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपाई बस देश का क्षेत्रफल बता दें। क्या भाजपा सरकार के आने के समय देश की कुल भूमि जितनी थी, अब भी उतनी ही है या अब चीनी कब्जे के बाद घट गई है। दिल्ली वाले न सही, तो लखनऊ वाले ‘पलायन स्पेशलिस्ट’ ही बता दें कि हमारी कितनी भूमि का पलायन हो गया है। वैसे जनता यह बखूबी समझती है कि भूमि का पलायन नहीं होता, जो वह चलकर कहीं चली गई हो।