क्या अंबुबाची मेला एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव है?

Click to start listening
क्या अंबुबाची मेला एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव है?

सारांश

अंबुबाची मेला असम के कामाख्या देवी मंदिर में मनाया जाने वाला एक अद्भुत आध्यात्मिक उत्सव है। इस मेले में देवी के रजोधर्म की पूजा की जाती है, जिससे भक्तों को दिव्य प्रसाद मिलता है। यह पर्व तांत्रिक साधना और नारी शक्ति का प्रतीक है।

Key Takeaways

  • अंबुबाची मेला असम के कामाख्या देवी मंदिर में मनाया जाता है।
  • इस मेले में देवी के रजोधर्म की पूजा होती है।
  • भक्तों को दिव्य प्रसाद मिलता है, जिसमें पवित्र जल और लाल कपड़ा शामिल है।
  • यह पर्व तांत्रिक साधना और नारी शक्ति का प्रतीक है।
  • मेले के दौरान गर्भगृह बंद रहता है और यह गुप्त नवरात्रि से जुड़ा है।

नई दिल्ली, 2 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में देवी उपासना की अनेक परंपराएं हैं, लेकिन असम में स्थित कामाख्या देवी मंदिर एक ऐसा स्थल है, जो रहस्यों और आध्यात्मिक शक्तियों से भरा हुआ है। मां कामाख्या देवी का मंदिर ना केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि तांत्रिक क्रियाओं और शक्तिपीठों की महिमा का प्रतीक भी है। कहा जाता है कि यहां पर माता सती का योनी भाग गिरा था, इसलिए इस मंदिर को कामाख्या मंदिर नाम दिया गया है।

कामाख्या का अर्थ है, मातृ देवी, एक शाक्त तांत्रिक देवी; वे इच्छा की देवी मानी जाती हैं। कामाख्या मंदिर, जिसे कामरूप का कन्या मंदिर या “आनंद का मंदिर” भी कहा जाता है।

'गुप्त नवरात्रि' के दौरान मां कामाख्या देवी मंदिर के गर्भ गृह के दरवाजे बंद रहते हैं और यहां 'अंबुबाची मेला' का आयोजन होता है। अंबूबाची शब्द संस्कृत से आया है, जिसमें 'अंबू' का अर्थ 'जल' और 'बाची' का अर्थ 'बहना' या प्रवाहित होना होता है। इस मेले में कई भक्त, तांत्रिक और अघोरी साधु दूर-दूर से कामाख्या मंदिर आते हैं। इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है, जो देवी के रजोधर्म (माहवारी) का प्रभाव माना जाता है। इसे देवी की विश्राम अवधि समझा जाता है। जब मंदिर के कपाट खुलते हैं, भक्तों को अंगोदक (पवित्र जल) और अंगबस्त्र (लाल कपड़ा) प्रसाद के रूप में दिया जाता है, जो देवी के रजोधर्म से संबंधित पवित्र कपड़े का टुकड़ा माना जाता है। यह प्रसाद शुभ और सुरक्षा देने वाला माना जाता है।

मेले के दौरान कामाख्या मंदिर का मुख्य गर्भगृह तीन दिन के लिए बंद रहता है। इस समय मंदिर के गर्भगृह में देवी के पिंडी को सफेद कपड़े से ढका जाता है, जो माता के रजस्वला होने के बाद लाल हो जाता है। यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। चौथे दिन मां भक्तों को दर्शन के लिए पुनः प्रकट होती हैं, जिसे महाभिषेक कहा जाता है।

योगिनी तंत्र के अनुसार कामाख्या मंदिर में 64 योगिनियों की साधना की जाती है। यह दुनिया का एकमात्र धार्मिक उत्सव है, जहां देवी के मासिक धर्म (रजस्वला) की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस समय देवी कामाख्या अपने रजोधर्म से गुजरती हैं, जो धरती की उर्वरता का प्रतीक है।

यहां प्रसाद के रूप में गर्भगृह से निकला हुआ जल (रजस्वला जल) और लाल कपड़ा (कामाख्या वस्त्र) दिया जाता है। रजस्वला प्रसाद को लेकर यहां के नियम बेहद कड़े हैं। सभी को यह प्रसाद नहीं मिलता। माता का प्रसाद ज्यादातर जरूरतमंद भक्तों, संतानहीन महिलाओं और कुमारी कन्याओं में बांटा जाता है।

मेले के दौरान पर्यटकों और शोधार्थियों को मंदिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं होती, जिससे इस पर्व का रहस्य और भी गहरा रहता है। गुप्त नवरात्रि के पहले दिन ही अंबुबाची व्रत रखा जाता है।

अंबूबाची कोई सामान्य मेला नहीं है, बल्कि यह एक गहन तांत्रिक साधना और शक्ति की आराधना का पर्व है। यह नारी शक्ति, प्रकृति के चक्र और तंत्र की रहस्यमयी परंपराओं का अद्भुत संगम है। मां कामाख्या देवी की यह लीला शक्ति की आराधना में रहस्य, भक्ति और गहराई तीनों का समावेश करती है।

Point of View

बल्कि यह नारी शक्ति और तांत्रिक परंपराओं का भी प्रतीक है। इस प्रकार के आयोजनों से समाज में सकारात्मकता और आध्यात्मिकता का संचार होता है।
NationPress
20/07/2025

Frequently Asked Questions

अंबुबाची मेला कब मनाया जाता है?
अंबुबाची मेला हर वर्ष गुप्त नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है।
कामाख्या देवी मंदिर की विशेषता क्या है?
कामाख्या देवी मंदिर तांत्रिक क्रियाओं और शक्तिपीठों का प्रतीक है।
इस मेले में क्या प्रसाद मिलता है?
इस मेले में भक्तों को अंगोदक (पवित्र जल) और अंगबस्त्र (लाल कपड़ा) प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
क्या सभी भक्तों को प्रसाद मिलता है?
नहीं, माता का प्रसाद ज्यादातर जरूरतमंद भक्तों और संतानहीन महिलाओं के बीच बांटा जाता है।
अंबुबाची मेले का महत्व क्या है?
यह मेला नारी शक्ति, तांत्रिक साधना और प्रकृति के चक्र का प्रतीक है।