क्या अमृतसर के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने संगत से की खास अपील?

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क्या अमृतसर के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने संगत से की खास अपील?

सारांश

अमृतसर के सच्चखंड श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने श्रद्धालुओं से सिर ढकने के लिए बेवजह पैसे खर्च न करने की अपील की है। उनका कहना है कि इन पैसों का उपयोग गरीबों की मदद में किया जाए। यह अपील सिख धर्म की परंपरा और सम्मान को बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

Key Takeaways

  • सिख धर्म में सिर ढकने की परंपरा का महत्व।
  • पैसों की बर्बादी से बचें और गरीबों की मदद करें।
  • गुरुद्वारे में उपलब्ध पटकों का उपयोग करें।
  • आस्था का फायदा न उठाने की अपील।
  • गुरु की असली सेवा में योगदान दें।

अमृतसर, २६ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सिख धर्म में हमेशा से सिर को ढकने की परंपरा रही है। चाहे वह महिला हो या पुरुष, गुरुद्वारे में दर्शन करने आए श्रद्धालुओं के लिए सिर ढकना अनिवार्य है। इसे गुरुद्वारे में सम्मान का प्रतीक माना जाता है। इस बीच, सच्चखंड श्री हरमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने संगत से एक विशेष अपील की है।

उन्होंने कहा कि श्रद्धालु कुछ सेकंड के लिए सिर ढकने के लिए पैसे की बर्बादी न करें और उन पैसों से गरीबों की सहायता करें।

ज्ञानी रघुबीर सिंह ने श्रद्धालुओं के साथ पटका (सिर ढकने का कपड़ा) के नाम पर हो रही लूट का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि दुकानदार पुराने कपड़ों का प्रयोग करते हैं और संगत बेकार में उन पर पैसा खर्च करती है।

उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "आजकल लूट की जा रही है और गुरु घर के प्रति बेअदबी हो रही है। श्रद्धालु अक्सर बेवजह पटका खरीद लेते हैं, जिनका बाद में कोई उपयोग नहीं होता।"

उन्होंने कहा, "एक मिनट के लिए माला को छूते हैं और फिर पटका को एक तरफ रख देते हैं, फिर वो किसी के काम नहीं आता।"

गौरतलब है कि गुरुद्वारा कमेटी पहले से ही मंदिरों में सिर ढकने के लिए श्रद्धालुओं के लिए पटका रखती है। गुरुद्वारों में जगह-जगह टोकरियां रखी रहती हैं, जिनमें सिर ढकने के लिए कपड़े मौजूद रहते हैं। लेकिन कुछ श्रद्धालु पवित्रता को देखते हुए नए पटके खरीदते हैं और उन्हें गुरुद्वारे में छोड़ जाते हैं। गुरुद्वारे के बाहर मौजूद ज्यादातर फेरी वाले भी श्रद्धालुओं को नए पटके खरीदने के लिए कहते हैं। लोगों के मन में आस्था होती है कि वे नया और स्वच्छ पटके ही खरीदें और इसी आस्था का फायदा बाजार में बैठे लोग उठाते हैं।

ज्ञानी रघुबीर सिंह ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे बेवजह पटके में पैसे बर्बाद न करें और उन पैसों को गरीबों की मदद में लगाएं। इस प्रथा से न केवल संगत का पैसा व्यर्थ जा रहा है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की भी बर्बादी हो रही है। इसलिए संगत को चाहिए कि अपनी मेहनत की कमाई इस तरह व्यर्थ न करें, बल्कि इसे सेवा और भलाई के कार्यों में लगाएं। यह गुरु की असली और सच्ची सेवा है।

(संशोधन :- कृपया पहले गई खबर की जगह 'लीड-1' को स्वीकार करें।)

Point of View

बल्कि आर्थिक संपत्ति के सही उपयोग पर भी जोर देता है। ज्ञानी रघुबीर सिंह की अपील को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि यह हमारी सामुदायिक जिम्मेदारी का एक हिस्सा है। हमें अपने संसाधनों का सही उपयोग करना चाहिए और समाज की भलाई के लिए प्रयास करना चाहिए।
NationPress
26/10/2025

Frequently Asked Questions

पटका क्या है?
पटका सिर ढकने के लिए इस्तेमाल होने वाला कपड़ा होता है, जिसे श्रद्धालु गुरुद्वारों में पहनते हैं।
क्या सिर ढकना अनिवार्य है?
हाँ, सिख धर्म में गुरुद्वारे में जाने के लिए सिर ढकना अनिवार्य है।
क्या पुराने कपड़े का इस्तेमाल करना उचित है?
ज्ञानी रघुबीर सिंह के अनुसार, पुराने कपड़े का इस्तेमाल करने से पैसे की बर्बादी होती है और यह उचित नहीं है।
इस अपील का उद्देश्य क्या है?
इस अपील का उद्देश्य श्रद्धालुओं को पैसे की बर्बादी से बचाना और गरीबों की सहायता करना है।
गुरुद्वारे में पटके का प्रबंधन कैसे होता है?
गुरुद्वारे में आमतौर पर सिर ढकने के लिए पटके रखे जाते हैं, ताकि श्रद्धालु उनका उपयोग कर सकें।