क्या अयोध्या में राम मंदिर परिसर के गेट नंबर-11 का नाम 'जगदगुरु आद्य शंकराचार्य द्वार' रखा गया?
सारांश
Key Takeaways
- गेट नंबर-11 का नामकरण जगदगुरु आद्य शंकराचार्य द्वार रखा गया है।
- ध्वजारोहण 25 नवंबर को होगा।
- प्रधानमंत्री मोदी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे।
- केसरिया ध्वज प्रकाश और त्याग का प्रतीक है।
- कोविदार वृक्ष का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में है।
अयोध्या, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। अयोध्या में स्थित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 25 नवंबर को राम मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण से पहले एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मंदिर परिसर के गेट नंबर-11 का नाम 'जगदगुरु आद्य शंकराचार्य द्वार' रखा गया है। इस द्वार पर एक नामपट्टिका भी स्थापित की गई है। प्रधानमंत्री मोदी 25 नवंबर को इसी द्वार से राम जन्मभूमि परिसर में प्रवेश करेंगे।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने यह भी घोषणा की है कि भगवान राम के विवाह के पवित्र दिन, 25 नवंबर को मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण होगा। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के अनुसार, केसरिया रंग का यह ध्वज ज्वाला, प्रकाश, त्याग और तप का प्रतीक होगा। मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर के ऊपर 30 फीट का बाहरी ध्वजदंड लगाया गया है, जिससे ध्वज कुल 191 फीट की ऊंचाई पर लहराएगा।
केसरिया ध्वज पर अंकित सूर्य प्रभु श्रीराम के सूर्यवंश का प्रतीक है, जबकि 'ऊँ' परमात्मा का प्रथम नामाक्षर है, जो चेतना और शाश्वत सत्य का प्रतिनिधित्व करता है। ध्वज पर कोविदार वृक्ष भी अंकित है, जो अयोध्या के राजवंशीय चिह्न के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण और हरिवंश पुराण दोनों में मिलता है।
कहा जाता है कि यह संसार का पहला हाइब्रिड वृक्ष था। परंपरा में वर्णित है कि इसी कोविदार वृक्ष पर चढ़कर लक्ष्मण ने भरत को सेना सहित वन की ओर आते देखा था।
महासचिव चंपत राय के अनुसार, इस बार कार्यक्रम में सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश के बंधु-बांधवों को बुलाया गया है। कुल छह हजार लोग आमंत्रित किए गए हैं, जिनमें अयोध्या जनपद से ही तीन हजार की संख्या है। अयोध्या के सभी संत कार्यक्रम में आएंगे, जिनमें जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों के संत भी शामिल होंगे। अनुमान है कि लगभग एक हजार संत-महात्मा इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे।
खासतौर पर वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले संत समाज को बुलाया गया है। हमारी दृष्टि इस बार उस समाज पर है, जो सुदूर जंगलों, वनवासी क्षेत्रों, पर्वतों और समुद्र किनारे के गांवों में निवास करता है। उत्तर में समुद्र नहीं है, लेकिन गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां हैं। उनके किनारे जीवन यापन करने वाले समाज में से लोगों का चयन किया गया है।