क्या आयुष मंत्रालय ने डब्ल्यूएचओ फोरम में पारंपरिक औषधियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मजबूत किया?

सारांश
Key Takeaways
- डब्ल्यूएचओ-आईआरसीएच की वार्षिक बैठक में भारत की भागीदारी।
- हर्बल औषधियों की सुरक्षा और गुणवत्ता पर चर्चा।
- भारत ने पारंपरिक चिकित्सा में वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने की योजना बनाई।
- समझौता ज्ञापन के माध्यम से तकनीकी सहयोग का विस्तार।
- भारत का वैश्विक स्वास्थ्य में योगदान।
नई दिल्ली, १४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में १४ से १६ अक्टूबर तक विश्व स्वास्थ्य संगठन- हर्बल औषधियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय विनियामक सहयोग (डब्ल्यूएचओ-आईआरसीएच) की १६वीं वार्षिक बैठक आयोजित की जा रही है। यह बैठक विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों और पर्यवेक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाकर हर्बल औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता से संबंधित विनियामक ढांचों के सामंजस्य तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करने पर विचार-विमर्श प्रदान करने के लिए एक मंच प्रदान करती है।
भारत इस बैठक में केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के सलाहकार (आयुर्वेद) डॉ. रघु अरकल के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से भाग ले रहा है। इस प्रतिनिधिमंडल में आयुष के उप महानिदेशक (प्रभारी) और भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी के लिए फार्माकोपिया आयोग (पीसीआईएम एंड एच) के निदेशक डॉ. रमन मोहन सिंह और राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. महेश दाधीच भी शामिल हैं। उनकी सक्रिय भागीदारी वैश्विक स्वास्थ्य ढांचों के भीतर पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के विनियामक सामंजस्य और एकीकरण को आगे बढ़ाने में भारत के नेतृत्व को उजागर करती है।
प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को इंडोनेशिया में भारत के राजदूत संदीप चक्रवर्ती से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने राजदूत को विश्व स्वास्थ्य संगठन-आईआरसीएच वार्षिक बैठक में भारत की भागीदारी के बारे में जानकारी दी और पारंपरिक चिकित्सा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के अवसरों का पता लगाया। विस्तृत चर्चा इंडोनेशियाई खाद्य एवं औषधि प्राधिकरण (एफडीए) और भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी के लिए फार्माकोपिया आयोग (पीसीआईएम एंड एच), आयुष मंत्रालय के बीच २६ जनवरी को हस्ताक्षरित पारंपरिक चिकित्सा गुणवत्ता आश्वासन के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर केंद्रित थी।
इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य क्षमता निर्माण, तकनीकी विशेषज्ञता के आदान-प्रदान और गुणवत्ता आश्वासन पद्धतियों के सामंजस्य के माध्यम से सहयोग को बढ़ाना है। राजदूत चक्रवर्ती ने समझौता ज्ञापन के प्रभावी कार्यान्वयन को सुगम बनाने के लिए जकार्ता में भारतीय दूतावास द्वारा सक्रिय समर्थन और समन्वय का आश्वासन दिया।
बैठक के उद्घाटन दिवस पर डॉ. रघु अरकल ने भारत में हर्बल औषधियों की स्थिति पर एक प्रस्तुति दी, जिसमें आयुष मंत्रालय द्वारा हाल ही में की गई पहलों, नीतिगत विकास और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों पर प्रकाश डाला गया। उनके संबोधन में पारंपरिक औषधियों के लिए विनियामक इको-सिस्टम को मजबूत करने की भारत की निरंतर प्रतिबद्धता और इस क्षेत्र में वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने में उसकी सक्रिय भूमिका को रेखांकित किया गया।
बैठक का एक प्रमुख आकर्षण 'हर्बल औषधियों की सुरक्षा और विनियमन' (कार्य समूह-१) और 'हर्बल औषधियों की प्रभावकारिता और इच्छित उपयोग' (कार्य समूह-३) पर विश्व स्वास्थ्य संगठन-आईआरसीएच कार्यशाला की कार्यवाही का विमोचन था। यह कार्यशाला विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित की गई थी और आयुष मंत्रालय द्वारा पीसीआईएमएंडएच के सहयोग से ६ से ८ अगस्त तक गाजियाबाद में इसकी मेजबानी की गई थी।
जकार्ता में आयोजित यह तीन दिवसीय बैठक विश्व स्वास्थ्य संगठन-आईआरसीएच सदस्य देशों की वैश्विक स्तर पर हर्बल औषधियों के सुरक्षित, प्रभावी और गुणवत्तापूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने की सामूहिक प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि करती है। भारत पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय नीति और विनियामक सहयोग को आकार देने में एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में उभरना जारी रखे हुए है।