क्या बस्तर का लाल शहीद रंजीत कश्यप तिरंगे में लिपटकर लौटा?

सारांश
Key Takeaways
- शहीद रंजीत कश्यप का तिरंगे में लिपटा शव गांव लौटा।
- गांव में शोक और गर्व का माहौल।
- रंजीत ने मणिपुर में देश के लिए शहादत दी।
- गांववालों का रंजीत के प्रति श्रद्धा।
- अंतिम यात्रा में कई गणमान्य लोग शामिल हुए।
बस्तर, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का बालेंगा गांव उस दिन शोक और गर्व के मिश्रित भावनाओं से भर गया, जब वहां का वीर शहीद रंजीत सिंह कश्यप का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ अपने गांव पहुंचा।
मणिपुर में उग्रवादियों के हमले में शहीद हुए रंजीत की अंतिम यात्रा में पूरा गांव एकजुट होकर शामिल हुआ। गांव की गलियों में "रंजीत अमर रहे" के नारों की गूंज सुनाई दी, हर आँख में आंसू थे, और हर दिल गर्व और दुख से भरा हुआ था।
19 सितंबर को मणिपुर के विष्णुपुर जिले में 33 असम राइफल्स के काफिले पर उग्रवादियों ने घात लगाकर हमला किया। इस हमले में अंधाधुंध गोलीबारी के बीच दो जवान शहीद हो गए, जबकि पांच अन्य को चोटें आईं। इसी हमले में रंजीत ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
रंजीत ने 2016 में असम राइफल्स में भर्ती होकर अपने माता-पिता के इकलौते बेटे का कर्तव्य निभाया। उनके परिवार में उनकी पत्नी और तीन बेटियां हैं, जिनमें सबसे छोटी केवल चार महीने की है। रंजीत का जन्म बस्तर के बालेंगा गांव में हुआ था।
गांववालों के अनुसार, वे बचपन से ही मिलनसार और मददगार स्वभाव के थे। देश सेवा का जज्बा उनके दिल में हमेशा से मौजूद था। पिछले महीने ही रंजीत घर आए थे और पत्नी से वादा किया था कि अगली बार लंबी छुट्टी पर आएंगे और अपनी सबसे छोटी बेटी का नामकरण करेंगे। लेकिन नियति ने कुछ और ही तय किया। वे तिरंगे में लिपटकर अपने गांव लौटे।
शहीद की अंतिम यात्रा में राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप, स्थानीय विधायक लखेश्वर बघेल, बस्तर कलेक्टर हरीश एस और एसपी शलभ सिन्हा सहित सीआरपीएफ के अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी गांव पहुंचे। सभी ने शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की।
बस्तर पुलिस के जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर देकर रंजीत को अंतिम सलामी दी। इसके बाद गांव में ही उनका दाह संस्कार किया गया। पूरे गांव ने नम आंखों से अपने लाल को अंतिम विदाई दी।