क्या आप 12 ज्योतिर्लिंग के उपलिंगों के बारे में जानते हैं, यहां भी बरसेगी भगवान भोलेनाथ की कृपा?

सारांश
Key Takeaways
- भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का महत्व।
- उपलिंगों के बारे में जानें, जो ज्योतिर्लिंगों से जुड़े हैं।
- ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से पापों का नाश और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
- भारत में विभिन्न स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों का महत्व।
- हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंग की पूजा का विशेष स्थान।
नई दिल्ली, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। शिव, जो स्वयंभू, शाश्वत, सर्वोच्च सत्ता, विश्व चेतना, और ब्रह्मांडीय अस्तित्व का आधार माने जाते हैं, उनके बारे में सम्पूर्ण जानकारी शिव पुराण में उपलब्ध है। शिव पुराण के 6 खंड और 24,000 श्लोकों में भगवान शिव के महत्व को विस्तार से समझाया गया है। इसमें भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन के महत्व का वर्णन किया गया है, जो यह स्पष्ट करता है कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से पापों का नाश, मानसिक शांति, और मुक्ति की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण के कोटिरुद्र संहिता में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का गहन विवरण दिया गया है। इन प्राचीन 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव का वास माना गया है, जिससे हिंदू धर्म में इनका दर्शन-पूजन का विशेष महत्व है।
शिव पुराण में वर्णित 12 ज्योतिर्लिंगों में यूपी में 1, उत्तराखंड में 1, झारखंड में 1, मध्य प्रदेश में 2, महाराष्ट्र में 3, गुजरात में 2, आंध्र प्रदेश में 1 और तमिलनाडु में 1 स्थित हैं। इन्हें सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम और घृष्णेश्वर के नाम से पूजा जाता है।
इसके साथ, शिव पुराण में इन 12 ज्योतिर्लिंगों के उपलिंगों का भी उल्लेख किया गया है। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के उपलिंग का वर्णन कोटिरुद्र संहिता के पहले अध्याय से प्राप्त होता है, किंतु इसमें विश्वेश्वर या विश्वनाथ, त्र्यम्बक या त्र्यम्बकेश्वर, और वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के उपलिंग का वर्णन नहीं है। इससे यह माना जा सकता है कि इनके उपलिंग नहीं हैं।
सोमनाथ का उपलिंग अन्तकेश (अन्तकेश्वर) के नाम से जाना जाता है, जो मही नदी और समुद्र के संगम पर स्थित है। मल्लिकार्जुन से प्रकट उपलिंग रुद्रेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है, जो भृगुकक्ष में है और उपासकों को सुख प्रदान करता है।
महाकाल से संबंधित उपलिंग दुग्धेश्वर या दूधनाथ के नाम से जाना जाता है, जो नर्मदा के तट पर है और सभी पापों का निवारण करता है। ओंकार से उत्पन्न उपलिंग कर्मदेश (कर्दमेश्वर) बिन्दुसरोवर में स्थित है, जो सम्पूर्ण इच्छाओं को पूरा करता है।
केदारनाथ लिङ्ग से उत्पन्न उपलिंग भूतेश (भूतेश्वर) यमुनातट पर है, और इसके दर्शन से बड़े-बड़े पापों का निवारण होता है। भीमशङ्कर से प्रकट उपलिंग भीमेश्वर सह्य पर्वत पर है और यह महान बल की वृद्धि करता है।
नागेश्वर संबंधी उपलिंग का नाम भी भूतेश्वर है, जो मल्लिका सरस्वती के तट पर है और दर्शन मात्र से सभी पापों को हर लेता है। रामेश्वर के उपलिंग को गुप्तेश्वर और घुश्मेश्वर के उपलिंग को व्याघेश्वर कहा गया है।
हालांकि विश्वेश्वर या विश्वनाथ, त्र्यम्बक या त्र्यम्बकेश्वर, और वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के उपलिंग का उल्लेख शिव पुराण में नहीं मिलता, कुछ विद्वान इन उपलिंगों को मानते हैं। केदारेश्वर और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के उपलिंग एक ही नाम से जाने जाते हैं, लेकिन उनके स्थान अलग-अलग हैं। वर्तमान में केदारेश्वर (केदारनाथ) का उपलिंग भूतेश्वर मथुरा में चिह्नित किया जा सकता है। अन्य उपलिंगों की वास्तविक स्थिति ज्ञात नहीं है।
प्रत्येक उपलिंग के नाम से भारत के विभिन्न स्थानों पर अनेक शिवलिंग स्थापित हैं, और स्थानीय निवासी अपने-अपने क्षेत्र के शिवलिङ्ग को वास्तविक उपलिंग मानते हैं।