क्या पोषण टीबी से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है? भारत के शोध ने वैश्विक मार्गदर्शन प्रदान किया, डब्ल्यूएचओ ने सराहा

सारांश
Key Takeaways
- पोषण का टीबी के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान है।
- अध्ययन ने वैश्विक स्वास्थ्य में योगदान दिया है।
- टीबी उन्मूलन के लिए शोध और इनवोवेशन की आवश्यकता है।
- दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में टीबी के मामलों की पहचान बढ़ी है।
- टीबी से लड़ने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बताया कि भारत में एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि पोषण (न्यूट्रिशन) ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) के उपचार में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के नेतृत्व में झारखंड में किए गए इस अध्ययन ने यह प्रमाणित किया कि अतिरिक्त पोषण टीबी के मामलों और मृत्यु दर को कम करने में प्रभावी है।
डब्ल्यूएचओ ने एक तीन दिवसीय वर्चुअल वर्कशॉप में कहा, "भारत की राशन्स स्टडी के निष्कर्षों ने टीबी के परिणामों और इसकी घटनाओं पर पोषण के प्रभाव को दिखाकर वैश्विक मार्गदर्शन में योगदान दिया है।"
संगठन ने दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र, जहां टीबी के सबसे अधिक मामले और मृत्यु दर देखी जाती है, से टीबी उन्मूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए रिसर्च और इनोवेशन को तेज करने की अपील की।
डब्ल्यूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की प्रभारी अधिकारी डॉ. कैथरीना बोहमे ने कहा, "हमारे क्षेत्र में साल 2023 में लगभग 50 लाख लोग टीबी से प्रभावित हुए और करीब 6 लाख लोगों की मृत्यु हुई।"
उन्होंने टीबी उन्मूलन रणनीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सहयोग, नए उपकरणों, प्रौद्योगिकियों और दवाओं के इस्तेमाल पर जोर दिया।
बोहमे ने कहा, "डब्ल्यूएचओ का कहना है कि टीबी को खत्म करने के बड़े लक्ष्यों को पाने के लिए शोध और नए तरीकों में तेजी लाने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। इसके लिए नई तकनीकों और दवाओं का इस्तेमाल आवश्यक है। यह भी जरूरी है कि इन नई चीजों को समय पर और सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध कराया जाए, ताकि बड़ा बदलाव लाया जा सके और कोई इससे वंचित न हो।"
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र ने उल्लेखनीय प्रगति की है। 2023 में टीबी के मामलों की पहचान बढ़ी है, जिससे पता चलता है कि कोविड-19 से हुई देरी के बाद अब रिकवरी हो रही है। हालांकि, टीबी उन्मूलन रणनीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह प्रगति अभी भी अपर्याप्त है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद टीबी फिर से एकल संक्रामक एजेंट से होने वाली मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया है। यह गरीब और कमजोर लोगों पर असमान रूप से भारी बोझ डालता है, जिससे असमानताएं और बढ़ जाती हैं।
इस अध्ययन ने दुनिया की सबसे खतरनाक संक्रामक बीमारी टीबी के खिलाफ वैश्विक दिशानिर्देशों को बेहतर बनाने में सहायता की है।
टीबी से लड़ाई के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया के देश नए तरीके अपना रहे हैं, जैसे कि मरीजों का पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, कंप्यूटर से बीमारी की निदान, डिजिटल उपकरणों से उपचार और मरीजों को सीधे आर्थिक सहायता प्रदान करना, जिससे सामाजिक सहायता प्रक्रिया सरल हो रही है।
कई देश बीमारी के प्रभाव को समझने के लिए महत्वपूर्ण शोध भी कर रहे हैं, जिसमें एपिडेमियोलॉजी पर अध्ययन शामिल है।
हालांकि, जानकारी की कमी और सहयोग के लिए सीमित प्लेटफार्मों के कारण शोध के परिणामों का उपयोग हर जगह समान रूप से नहीं हो पा रहा है।
डॉ. बोहमे ने कहा, "हमारी प्रगति एकसमान नहीं है। क्षेत्र में रिसर्च और इनोवेशन की क्षमता भिन्न है। कई बार शोध के परिणाम अलग-थलग रह जाते हैं और दूसरों के साथ साझा नहीं हो पाते। दवा-प्रतिरोधी टीबी के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं।"
उन्होंने कहा कि इनोवेशन और रिसर्च के साथ ही वैक्सीन, मेडिसीन और डायग्नोस्टिक्स के लाभों तक सभी की समान रूप से पहुंच होनी चाहिए।