क्या भारत-यूके एफटीए से एमएसएमई कारोबारियों में उत्साह का माहौल है, निर्यात में आएगी तेजी?

सारांश
Key Takeaways
- भारत-यूके एफटीए से एमएसएमई को नई संभावनाएं मिलेंगी।
- बिना टैरिफ के निर्यात में वृद्धि होगी।
- कांचीपुरम के रेशमी उद्योग को भी लाभ होगा।
- ब्रिटिश बाजार में पहुंच से रोजगार में वृद्धि होगी।
- करूर से निर्यात में वृद्धि की संभावना है।
नई दिल्ली, 30 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारत-यूके फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) से एमएसएमई कारोबारियों में एक उत्साह का माहौल बना है और यह देश के निर्यात को व्यापक रूप से बढ़ावा देने जा रहा है। यह जानकारी व्यापारियों ने साझा की।
समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस के साथ बातचीत में, तमिलनाडु के करूर स्थित होमलाइनंस टेक्सटाइल की मालिक एंजेला स्टीफन बाबू ने कहा कि भारत और यूके के बीच हस्ताक्षरित एफटीए बहुत लाभदायक है, जिससे हमारे उत्पादों पर लगने वाला 9.2 प्रतिशत से 20 प्रतिशत का टैरिफ अब शून्य हो गया है। इससे निर्यातकों के लिए नए अवसर उत्पन्न होंगे।
भारत वर्तमान में ब्रिटेन को प्रति वर्ष लगभग 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के टेक्सटाइल और रेडी-मेड गारमेंट्स का निर्यात करता है। इस मुक्त व्यापार समझौते के साथ, अगले 5-6 वर्षों में यह मात्रा दोगुनी होने की संभावना है।
उन्होंने आगे कहा कि एफटीए के बाद यूके के आयातकों के साथ हमारा संचार बेहतर होगा और वहां निर्यात आने वाले समय में दोगुना हो सकता है। वर्तमान में करूर से 1,000 करोड़ रुपए से 1,500 करोड़ रुपए का निर्यात होता है।
तमिलनाडु का करूर एक प्रमुख टेक्सटाइल केंद्र है। ब्रिटिश बाजार में शुल्क-मुक्त पहुंच मिलने से निर्यात, निवेश और रोजगार में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।
तमिलनाडु के कांचीपुरम में सिल्क साड़ी उत्पादक मोहन ने कहा कि भारत-ब्रिटिश समझौते से रेशम उत्पादन को बढ़ावा मिलने और बुनकरों के लिए नए अवसर सृजित होने की संभावना है। यह समझौता उत्पादन और निर्यात में वृद्धि में सहायक हो सकता है, जिससे स्थानीय बुनकरों को लाभ होगा।
कांचीपुरम अपनी रेशमी साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है और यहां 6,000 से अधिक हथकरघा बुनकर निवास करते हैं। ये बुनकर अपनी साड़ियों को निजी कंपनियों और सहकारी संस्थाओं को बेचते हैं।
हाल ही में सोने और चांदी की कीमतों में वृद्धि के कारण कांचीपुरम रेशमी साड़ियों की कीमतों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप बिक्री में कमी आई है, जिससे बुनकरों की आय प्रभावित हुई है।
मोहन ने आगे कहा कि कांचीपुरम के रेशम उद्योग को इन चुनौतियों का सामना करने और भारत-ब्रिटेन समझौते जैसे अवसरों का लाभ उठाने के लिए सहायता की आवश्यकता है।