क्या बिहार चुनाव 2025 में छातापुर सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सियासी समीकरण बदलेंगे?

सारांश
Key Takeaways
- छातापुर सीट का राजनीतिक इतिहास महत्वपूर्ण है।
- भाजपा और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला होगा।
- मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाता निर्णायक हैं।
- बाढ़ प्रबंधन की चुनौतियां बनी हुई हैं।
- कृषि और सीमापार व्यापार क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं।
पटना, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के सुपौल जिले में छातापुर विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला सरल नहीं है। एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटा है, जबकि दूसरी तरफ राजद नेतृत्व वाला गठबंधन अपनी खोई हुई जमीन को पुनः प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है।
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में छातापुर पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। चलिए, हम छातापुर के राजनीतिक इतिहास पर एक नज़र डालते हैं।
वास्तव में, छातापुर विधानसभा सीट सुपौल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और यह नेपाल सीमा के निकट होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 1967 में स्थापित यह सीट प्रारंभ में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद इसे सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया गया। तब से अब तक यहां 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। शुरुआत में कांग्रेस का प्रभाव था, लेकिन बाद में उसे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और जनता दल से कड़ी टक्कर मिली। कांग्रेस ने 1969 से 1985 तक तीन बार जीत हासिल की, जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) ने दो-दो बार सफलता पाई।
2005 से यह सीट भाजपा-जदयू के पास है। वर्तमान विधायक नीरज कुमार सिंह 2010 में भाजपा के टिकट पर और 2015-2020 में भी इसी पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए हैं।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के नीरज कुमार सिंह ने 93,755 वोटों के साथ जीत हासिल की। उन्होंने राजद के विपिन कुमार सिंह को 20,635 वोटों से हराया।
इसके अतिरिक्त, इस सीट पर मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में यहां 3,10,035 रजिस्टर्ड मतदाता थे, जिनमें 18.94 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 24.1 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता शामिल थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,40,884 हो गई है।
यह क्षेत्र कोसी नदी के नजदीक है, जो बारिश के मौसम में बाढ़ के लिए जानी जाती है। हालांकि, इस क्षेत्र की पहचान ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सीमापार व्यापार के रूप में है। यह सीट मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, जहां धान, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं।
मौसमी सब्जियां और छोटे स्तर पर दूध उत्पादन भी स्थानीय आजीविका को सहयोग करते हैं। भारत-नेपाल सीमा के निकट होने के कारण अनौपचारिक व्यापार और सीमा पार आवाजाही इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
हाल के वर्षों में सड़कें और स्कूलों में सुधार हुआ है, लेकिन सिंचाई, स्वास्थ्य सेवाएं और बाढ़ प्रबंधन जैसी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं।