क्या बिहार चुनाव 2025 में राजद का नया चेहरा जदयू के विश्वास को चुनौती देगा?
सारांश
Key Takeaways
- धोरैया विधानसभा सीट की ऐतिहासिक पहचान और राजनीतिक इतिहास महत्वपूर्ण हैं।
- यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
- धोरैया का धनकुंड नाथ महादेव मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र है।
- राजद और जदयू के बीच मुकाबला दिलचस्प होगा।
- यह क्षेत्र कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था वाला है।
पटना, 24 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के बांका ज़िले का धोरैया विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। यह क्षेत्र राजौन और धोरैया प्रखंडों का समावेश करता है और बांका लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। धोरैया अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक विशेषताओं के कारण पूरे जिले में एक विशिष्ट पहचान रखता है।
धोरैया का राजनीतिक इतिहास दर्शाता है कि यहाँ की जनता ने कभी किसी एक दल को प्राथमिकता नहीं दी। धोरैया विधानसभा सीट की स्थापना 1951 में हुई थी। अब तक यहाँ 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस, सीपीआई और जदयू (समता पार्टी सहित) ने 5-5 बार जीत दर्ज की। 1969 में निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहा।
यदि 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो राजद ने पहली बार इस सीट पर कब्जा जमाया, जब भूदेव चौधरी ने जदयू के मनीष कुमार को हराया। जदयू ने मनीष कुमार पर फिर से विश्वास जताते हुए उन्हें टिकट दिया है। राजद ने भूदेव चौधरी की बजाय त्रिभुवन प्रसाद को कैंडिडेट बनाया है। जन स्वराज पार्टी से सुमन पासवान मैदान में हैं।
धोरैया का धनकुंड नाथ महादेव मंदिर इस इलाके की धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर धनकुंड पंचायत में स्थित है और माना जाता है कि इसका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह प्राचीन शिव मंदिर मुगल काल में भी एक प्रसिद्ध पूजा स्थल था। मंदिर की संरचना में मुगलकालीन स्थापत्य के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
इसके अलावा, धोरैया में एक प्राचीन काली मंदिर भी स्थित है, जो स्थानीय लोगों के बीच श्रद्धा का केंद्र है। वहीं, राजौन प्रखंड के धनसार गांव में स्थित दुर्गा मंदिर और बटसार के दुर्गा बाजार की दुर्गा मंडप भी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। बताया जाता है कि दुर्गा बाजार की पूजा परंपरा बनारस शैली पर आधारित है और 1970 के दशक से इसकी ख्याति बिहार और झारखंड तक फैली हुई है।
भौगोलिक दृष्टि से देखें तो धोरैया क्षेत्र के आसपास आधा दर्जन नदियां बहती हैं, जिससे यहाँ की भूमि अत्यंत उपजाऊ बन गई है। यही कारण है कि यह इलाका मुख्यतः कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला क्षेत्र माना जाता है।