क्या ब्रह्मकपाल पितरों की मुक्ति का अंतिम द्वार है? यहां भगवान शिव को प्रायश्चित करना पड़ा था

सारांश
Key Takeaways
- ब्रह्म कपाल पितरों की मुक्ति का अंतिम द्वार है।
- भगवान शिव ने यहां ब्रह्महत्या से मुक्ति पाई।
- पिंडदान करने से सौ पीढ़ियों तक के पितरों को मुक्ति मिलती है।
- यहां श्राद्ध कर्म विधिपूर्वक किए जाते हैं।
- ब्रह्म कपाल का धार्मिक महत्व पूरे देश में है।
दिल्ली, 9 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। ब्रह्म कपाल उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम के निकट अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यह तीर्थ स्थल धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, विशेषकर उन व्यक्तियों के लिए जो अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने का इच्छुक हैं।
यहां पर विश्वास किया जाता है कि यही वह स्थान है, जहां स्वयं भगवान शिव ने ब्रह्महत्या जैसे महापाप से मुक्ति पाई थी।
कहा जाता है कि ब्रह्म कपाल में पिंडदान करने से सौ पीढ़ियों तक के पितरों को मुक्ति मिलती है। गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण में इस तीर्थ स्थल की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है।
यह भी माना जाता है कि जिन पितरों को किसी अन्य स्थान पर मुक्ति नहीं मिल पाती, उनका यहां श्राद्ध करने से उन्हें मुक्ति मिल जाती है। ब्रह्मकपाल पर पुरोहितों की सहायता से विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म संपन्न होते हैं।
इस स्थान की कहानी पौराणिक ग्रंथों और पुराणों से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान ब्रह्मा ने अपने मन से चार मुख उत्पन्न किए ताकि वे चारों दिशाओं में देख सकें और सृष्टि का निर्माण कर सकें। लेकिन बाद में उन्होंने एक पांचवां मुख भी उत्पन्न किया जो ऊपर की दिशा में था।
इस पांचवे मुख के बाद उनमें अहंकार आ गया, क्योंकि ब्रह्मा ने स्वयं को सृष्टि में सर्वोच्च समझना शुरू कर दिया। जब उनका अहंकार बढ़ गया और ब्रह्मा ने यह दावा किया कि वे शिव से भी श्रेष्ठ हैं, तो भगवान शिव ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे नहीं माने।
भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। यह सिर उनके हाथ में चिपक गया और ब्रह्महत्या का पाप उन पर लग गया। यह पाप इतना गंभीर था कि भगवान शिव को इसके प्रायश्चित के लिए भिक्षाटन करने निकलना पड़ा।
वह पूरी दुनिया में भटकते रहे, लेकिन ब्रह्मा का कटा हुआ सिर उनके हाथ से नहीं छूटा। अंततः जब वह बद्रीनाथ पहुंचे, तो ब्रह्मा का कटा हुआ सिर उनके हाथ से गिर गया। ऐसा कहा जाता है कि जिस स्थान पर ब्रह्मा जी का सिर गिरा, उसी स्थान को ब्रह्मकपाल कहा गया।
मान्यता है कि गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ब्रह्म कपाल पर पिंडदान किया था। यही कारण है कि इस स्थान को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है।
गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि ब्रह्म कपाल के समान पुण्य देने वाला कोई अन्य तीर्थ नहीं है। यहां किया जाने वाला पिंडदान अंतिम माना जाता है। इसके बाद उस पूर्वज के लिए कोई पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान यहां बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों का श्राद्ध करने आते हैं।