क्या एआई के युग में हर सप्ताह टेक्नोलॉजी अपडेट होती है? ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी का बयान

सारांश
Key Takeaways
- ग्लोबल साउथ के हितों को वैश्विक मंचों पर प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए संस्थानों में सुधार जरूरी है।
- ब्रिक्स का विस्तार समय के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता को दर्शाता है।
- एआई के युग में टेक्नोलॉजी लगातार अपडेट हो रही है।
- भारत का मानवता के हित में काम करना दायित्व है।
रियो डी जेनेरियो, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान में पांच देशों की यात्रा पर हैं। उनकी यात्रा का चौथा पड़ाव ब्राजील है, जहाँ उन्होंने 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा का दिल से आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ब्राजील की अध्यक्षता में ब्रिक्स के अंतर्गत सहयोग को नई गति और ऊर्जा मिली है, और इसके लिए राष्ट्रपति लूला की दूरदर्शिता और अटूट प्रतिबद्धता की सराहना की।
प्रधानमंत्री मोदी ने इंडोनेशिया के ब्रिक्स परिवार में शामिल होने पर राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो को भारत की ओर से बधाई और शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ अक्सर दोहरे मापदंडों का शिकार होता रहा है। चाहे विकास हो, संसाधनों का वितरण हो, या सुरक्षा के मुद्दे, ग्लोबल साउथ के हितों को प्राथमिकता नहीं मिली है। जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी जैसे विषयों पर ग्लोबल साउथ को कभी कुछ नहीं मिला।
उन्होंने स्पष्ट किया कि 20वीं सदी में बने वैश्विक संस्थानों में मानवता के दो-तिहाई हिस्से को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। जिन देशों का आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है, उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है। यह केवल प्रतिनिधित्व का प्रश्न नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी प्रश्न है। बिना ग्लोबल साउथ के ये संस्थाएं वैसी ही लगती हैं जैसे मोबाइल में सिम तो है, पर नेटवर्क नहीं। ये संस्थान 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ हैं। विश्व के विभिन्न हिस्सों में चल रहे संघर्ष, महामारी, आर्थिक संकट, या साइबर और स्पेस में उभरती चुनौतियों के लिए इनके पास कोई समाधान नहीं है।
पीएम मोदी ने कहा कि आज की दुनिया को एक नए बहुध्रुवीय एवं समावेशी विश्व व्यवस्था की आवश्यकता है। इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थानों में सुधार से करनी होगी, जो केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि वास्तविक होना चाहिए। शासन संरचना, मतदान अधिकार और नेतृत्व में बदलाव आना चाहिए। ग्लोबल साउथ के देशों की चुनौतियों को नीति निर्माण में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स का विस्तार और नए मित्रों का जुड़ना इस बात का प्रमाण है कि ब्रिक्स एक ऐसा संगठन है, जो समय के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता रखता है। अब यही इच्छा शक्ति हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, डब्ल्यूटीओ और बहुपक्षीय विकास बैंक जैसे संस्थानों में सुधार के लिए दिखानी होगी। एआई के युग में हर सप्ताह टेक्नोलॉजी अपडेट होती है। ऐसे में ग्लोबल संस्थानों का 80 वर्षों में एक बार भी अपडेट न होना स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी की सॉफ्टवेयर को 20वीं सदी के टाइप राइट्स से नहीं चलाया जा सकता।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने हमेशा अपने हितों से ऊपर उठकर मानवता के हित में काम करना अपना दायित्व समझा है। हम ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर सभी विषयों पर रचनात्मक योगदान देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।