क्या 'प्रेम रोग' से लेकर 'द लास्ट कलर' तक सिनेमा ने 'सिंगल वूमेन' की सशक्त कहानी को सही ढंग से पेश किया?

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क्या 'प्रेम रोग' से लेकर 'द लास्ट कलर' तक सिनेमा ने 'सिंगल वूमेन' की सशक्त कहानी को सही ढंग से पेश किया?

सारांश

इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे भारतीय सिनेमा ने विधवाओं की कहानियों को पर्दे पर जीवंत किया है। 'प्रेम रोग' से लेकर 'द लास्ट कलर' जैसी फिल्मों ने सिंगल वूमेन के संघर्षों और सशक्तीकरण को दर्शाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। क्या ये फिल्में वाकई सामाजिक परिवर्तन में सहायक रही हैं?

Key Takeaways

  • सामाजिक सुधार: सिनेमा ने विधवाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई है।
  • संवेदनशीलता: इन फिल्मों ने विधवाओं के मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है।
  • सशक्तीकरण: फिल्में सिंगल वूमेन की सशक्त कहानी को दर्शाती हैं।
  • संघर्ष: विधवाओं के जीवन में आने वाले संघर्षों को पर्दे पर दिखाया गया है।

मुंबई, 22 जून (राष्ट्र प्रेस)। ‘वह क्रूर काल तांडव की स्मृति रेखा सी, वह टूटे तरु की छूटी लता सी दीन’ यह पंक्ति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता ‘विधवा’ से है, जो इन महिलाओं के जीवन के संघर्ष को दर्शाती है। साहित्य ही नहीं, सिनेमाई जगत ने भी विधवाओं की कहानियों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। ‘प्रेम रोग’ से लेकर ‘वॉटर’ तक इनकी एक लंबी श्रृंखला है।

ऐसी फिल्में सामाजिक सुधार, सशक्तीकरण और मानवीय भावनाओं को उजागर करती हैं। 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 2010 में इन महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शुरू किया था।

भारतीय सिनेमा ने फिल्मों के माध्यम से इन महिलाओं के संघर्ष और रूढ़ियों को तोड़ने की कहानियों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। इन फिल्मों में ‘सिंगल वूमेन’ और ‘सिंगल मदर’ के दर्द और संघर्षों को भी आवाज दी गई है।

डायरेक्टर विकास खन्ना की ‘द लास्ट कलर’ में अभिनेत्री नीना गुप्ता मुख्य भूमिका में हैं। यह फिल्म 2019 में रिलीज हुई और विधवाओं के जीवन में रंग भरने का काम करती है। फिल्म का अंतिम दृश्य, जिसमें विधवाएं होली का त्योहार मनाती हैं, बेहद खास है। फिल्म में एक 70 वर्षीय विधवा और 9 वर्षीय फूल बेचने वाले बच्चे की गहरी दोस्ती को दर्शाया गया है।

डायरेक्टर नागेश कुकुनूर की फिल्म ‘डोर’ दो महिलाओं के जीवन पर आधारित है। 2006 में रिलीज हुई इस फिल्म में एक का पति जेल में है और दूसरी विधवा हो जाती है। फिल्म में आयशा टाकिया और गुलपनाग मुख्य किरदार में हैं। आयशा ने एक विधवा महिला का किरदार निभाया है। हालाँकि, एक घटना के बाद दोनों की जिंदगी में बड़ा परिवर्तन आता है।

‘वॉटर’ जो 2005 में रिलीज हुई, दीपा मेहता के निर्देशन में बनी है। इसकी पटकथा अनुराग कश्यप ने लिखी है। यह फिल्म 1938 में स्थापित भारत के एक आश्रम में विधवाओं के जीवन को दर्शाती है। एक बाल विधवा सामाजिक रूढ़ियों का सामना करती है। यह फिल्म पितृसत्तात्मक व्यवस्था की क्रूरता और विधवाओं के प्रति भेदभाव को उजागर करती है। इस फिल्म को ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था।

‘प्रेम रोग’, जो 1982 में आई थी, राज कपूर के निर्देशन में बनी। इसमें ऋषि कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरे की प्रेम कहानी है, जबकि यह फिल्म विधवा पुनर्विवाह के संवेदनशील मुद्दे को उठाती है। यह फिल्म विधवाओं के प्रेम और पुनर्विवाह के अधिकार को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी विचार था।

Point of View

यह कहना उचित है कि भारतीय सिनेमा ने विधवाओं की कहानियों को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक सन्देश के रूप में प्रस्तुत किया है। यह महत्वपूर्ण है कि हम समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ने के लिए इस तरह की कहानियों को और अधिक बढ़ावा दें।
NationPress
22/06/2025

Frequently Asked Questions

क्या 'द लास्ट कलर' फिल्म विधवाओं की स्थिति को दर्शाती है?
हाँ, 'द लास्ट कलर' फिल्म विधवाओं के जीवन को रंगीन बनाने की कोशिश करती है और उनके संघर्षों को उजागर करती है।
क्या 'प्रेम रोग' फिल्म में विधवा पुनर्विवाह का मुद्दा उठाया गया है?
'प्रेम रोग' फिल्म विधवा पुनर्विवाह के संवेदनशील मुद्दे को उठाती है और इसे एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय के रूप में प्रस्तुत करती है।
'वॉटर' फिल्म का क्या संदेश है?
'वॉटर' पितृसत्तात्मक व्यवस्था के प्रति विधवाओं के संघर्षों को दर्शाती है और सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देती है।