क्या सीएम रेखा गुप्ता ने मातृभाषा के महत्व पर जोर दिया और दिल्ली को 'संस्कृति का संगम' बताया?

सारांश
Key Takeaways
- मातृभाषा का महत्व बच्चों की पहचान में होता है।
- सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन हर साल किया जाएगा।
- दिल्ली में सभी भाषाओं को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
- नई पीढ़ी को उनकी जड़ों से जोड़ा जाएगा।
- दिल्ली केवल राजधानी नहीं, एक संस्कृति का संगम है।
नई दिल्ली, 7 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली में आयोजित एक सांस्कृतिक आयोजन में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मातृभाषा और सांस्कृतिक संबंधों का महत्व रेखांकित किया। इस अवसर पर बच्चों ने गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं में प्रस्तुति दी।
सीएम रेखा गुप्ता ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट में लिखा, "गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं के ग्रीष्मकालीन कक्षाओं के शिक्षकों का सम्मान समारोह में भाग लिया। इन शिक्षकों ने अपनी मातृभूमि की भाषा और संस्कृति को दिल्ली में जीवित रखकर न केवल बच्चों को पहचान दी है, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत को और भी समृद्ध किया है।"
उन्होंने लिखा, "दिल्ली सरकार का संकल्प है कि हर क्षेत्रीय भाषा, हर संस्कृति और हर परंपरा को संरक्षित और प्रोत्साहित किया जाए ताकि दिल्ली देश की सांस्कृतिक विविधता का जीवंत प्रतीक बनी रहे।"
रेखा गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि जब मंच पर सुंदर-सुंदर बच्चों ने अपनी मातृभाषा में प्रस्तुति दी, तो दिल से यही निकला कि वास्तव में मातृभाषा जैसी कोई नहीं। जो मन बोलता है, वही अच्छा लगता है। बच्चे जब उसी भाषा में बोलना और सीखना शुरू करते हैं, तो वही शब्द उनके जीवन की नींव बनते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में रह रहे कई परिवार अलग-अलग राज्यों से आकर बसे हैं। कोई अपने माता-पिता के साथ आया, कोई दादा-दादी के साथ और कोई खुद अपने गांव-घर छोड़कर दिल्ली आया है, लेकिन बचपन में जो गांव की मिट्टी की खुशबू हमने महसूस की, वो आज के बच्चे शायद नहीं कर पा रहे हैं।
उन्होंने कहा, "दिल्ली में रह रहे बच्चों को अब गांव के परिवेश जैसा माहौल नहीं मिलता, लेकिन जब यहां पर गढ़वाली, कुमाऊंनी जैसी भाषाएं सिखाई जाती हैं तो नई पीढ़ी का अपने गांव से रिश्ता फिर से जुड़ने लगता है। यह प्रयास बहुत सराहनीय है।"
रेखा गुप्ता ने बताया कि दिल्ली सरकार ने निर्णय लिया है कि हर साल सभी राज्यों के सांस्कृतिक उत्सव दिल्ली में मनाए जाएंगे, ताकि यहां रहने वाले हर राज्य के लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहें। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड उत्सव भी अब दिल्ली की नियमित सांस्कृतिक परंपरा बन गया है।
मुख्यमंत्री ने दिल्ली की खासियत को उजागर करते हुए कहा कि दिल्ली सिर्फ राजधानी नहीं, बल्कि संस्कृति का संगम है। यहां हम सब मिलकर एक-दूसरे के त्योहारों को आदर और प्रेम से मनाते हैं। जैसे हाल ही में महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी दिल्ली में बड़े धूमधाम से मनाई गई। अब नवरात्रि आ रही है और इसकी रौनक भी गुजरात से कम नहीं होगी दिल्ली में।
उन्होंने कहा कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम अपनी मातृभाषा और संस्कृति को जीवित रखें और नई पीढ़ी को भी इससे जोड़ें।