क्या दिल्ली हाई कोर्ट में 'उदयपुर फाइल्स' फिल्म विवाद पर सुनवाई हुई?

सारांश
Key Takeaways
- दिल्ली हाई कोर्ट में 'उदयपुर फाइल्स' फिल्म विवाद पर सुनवाई हुई।
- फिल्म निर्माता ने कहा कि नूपुर शर्मा का बयान हटा दिया गया है।
- फिल्म का विषय भारत-पाकिस्तान के संबंध में है।
- सीबीएफसी ने कहा कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर नहीं, बल्कि अपराध पर आधारित है।
- विरोध पक्ष ने कहा कि फिल्म सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देती है।
नई दिल्ली, 10 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली हाई कोर्ट में गुरुवार को कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज को लेकर सुनवाई हुई। इस प्रक्रिया के दौरान पक्ष और विपक्ष के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं।
फिल्म के निर्माता के वकील ने कहा कि नूपुर शर्मा का बयान हटा दिया गया है। उनके पास कन्हैया लाल हत्याकांड में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की चार्जशीट है, जिसमें इसी बात का उल्लेख है। हाईकोर्ट ने कहा कि आप जांच के दौरान एकत्रित की गई किसी भी जानकारी के आधार पर फिल्म की कहानी को सही नहीं ठहरा सकते हैं।
फिल्म निर्माता के वकील ने कहा कि फिल्म की कहानी भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में है। यह कहना गलत है कि सभी मुसलमानों को नकारात्मक रूप में दिखाया गया है। 55 कट इस बात का प्रमाण हैं कि सांप्रदायिक वैमनस्य के पहलू पर भी ध्यान दिया गया है। शुक्रवार के लिए 1,800 थिएटर बुक किए गए हैं और लगभग एक लाख टिकट बिक चुके हैं।
वहीं, सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) के प्रवक्ता एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि आप फिल्म देखिए। यह किसी विशेष समुदाय पर नहीं, बल्कि एक अपराध पर आधारित फिल्म है। पूरी कहानी यही है कि सांप्रदायिक वैमनस्य के बीज सुनियोजित तरीके से सीमा पार से बोए जा रहे हैं। फिल्म में समुदायों के बयान 'हम सभी को मिलकर रहना चाहिए' को शामिल किया गया है।
इस पर हाई कोर्ट ने पूछा कि इसका फिल्म से क्या संबंध है? शर्मा ने कहा कि फिल्म यहां के लोगों को सावधान करती है। यह एक अपराध पर आधारित फिल्म है। हमें मिलकर रहना चाहिए, यही इस फिल्म का संदेश है। अगर किसी को इससे कोई आपत्ति है तो मुझे कुछ नहीं कहना।
चेतन शर्मा ने कहा कि सीबीएफसी बोर्ड इस तथ्य से अवगत है कि सामान्यतः या विशेष रूप से किसी समुदाय विशेष को टारगेट नहीं करना चाहिए। फिल्म का विषय कोई समुदाय नहीं, बल्कि अपराध है। देवबंद का संदर्भ बदल दिया गया है। नूपुर शर्मा या ज्ञानवापी का संदर्भ हटा दिया गया है।
वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत के समक्ष अपनी दलील रखते हुए कहा कि हमने पहली बार फिल्म देखी है। फिल्म निर्माता के वकील का कहना है कि फिल्म का किसी समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मेरा कहना है कि फिल्म एक समुदाय को बदनाम करने के अलावा और कुछ नहीं है।
सिब्बल ने कहा कि फिल्म हिंसा और नफरत से भरी है और एक समुदाय को निशाना बनाती है। एक समुदाय को ऐसे दिखाया गया है, मानो वह समाज की बुराइयों का ही प्रतिनिधित्व करता हो। जिस व्यक्ति ने यह फिल्म बनाई है, उसका बैकग्राउंड आज एक अंग्रेजी अखबार में छपा है, जिससे पता चलता है कि उसने अतीत में क्या किया?
उन्होंने कहा कि फिल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्य से होती है, जहां एक वर्ग विशेष का आदमी दूसरे वर्ग की जगह पर मांस का टुकड़ा फेंकता है और दूसरे दृश्य में पुलिस वर्ग विशेष से संबंधित छात्रों को गिरफ्तार करती है।