क्या पद्म भूषण बीएन सुरेश ने गांव की मिट्टी से निकलकर अंतरिक्ष तक का सफर तय किया?
सारांश
Key Takeaways
- डॉ. बीएन सुरेश का योगदान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में महत्वपूर्ण है।
- उन्होंने पीएसएलवी को विश्व का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आईआईएसटी की स्थापना के माध्यम से उन्होंने युवा वैज्ञानिकों को मार्गदर्शन दिया।
- उनकी उपलब्धियाँ देश को अंतरिक्ष में नई पहचान दिलाने में सहायक रही हैं।
- डॉ. सुरेश जैसे वैज्ञानिकों की मेहनत ने भारत को अंतरिक्ष महाशक्ति बना दिया है।
नई दिल्ली, ११ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। एक साधारण किसान परिवार से आने वाले इस व्यक्ति ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को ऐसी ऊँचाइयाँ दी हैं जिन पर आज सम्पूर्ण देश गर्व करता है। पीएसएलवी को विश्व का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बनाने से लेकर स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट (एसआरई) तक, डॉ. सुरेश का योगदान भारतीय अंतरिक्ष यात्रा की रीढ़ बना है।
डॉ. बायरना नागप्पा सुरेश का जन्म १२ नवंबर १९४३ को कर्नाटक के एक छोटे से गांव होसाकेरे में हुआ। कन्नड़ माध्यम से स्कूली शिक्षा पूरी करने वाले सुरेश ने मैसूर विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग एवं आईआईटी मद्रास से पोस्ट ग्रेजुएशन प्राप्त किया।
१९६९ में इसरो ज्वाइन करने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक (२००३-२००७) रहते हुए उन्होंने पीएसएलवी और जीएसएलवी के कई सफल लॉन्च किए। उनके नेतृत्व में पीएसएलवी-सी५, सी६ और सी७ जैसी उड़ानें हुईं, जो आज भी रिकॉर्ड हैं।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि २००७ में स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट (एसआरई-१) रही। पहली कोशिश में ही कैप्सूल को सटीक जगह पर सुरक्षित उतारा गया। यह भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में पहला कदम था। डॉ. सुरेश ने सभी भारतीय लॉन्च व्हीकल्स के लिए नेविगेशन, गाइडेंस एंड कंट्रोल (एनजीएस) सिस्टम विकसित किए। इलेक्ट्रो-हाइड्रॉलिक और इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्ट्यूएशन सिस्टम भी उनके नेतृत्व में स्वदेशी बने, जिससे आयात पर निर्भरता खत्म हुई।
डॉ. सुरेश ने ही भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम) की नींव रखी और उसके संस्थापक निदेशक बने। आज आईआईएसटी देश की एकमात्र स्पेस यूनिवर्सिटी है जो १०० प्रतिशत छात्रों को इसरो में नौकरी देती है। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे आईआईएसटी के चांसलर और इसरो मुख्यालय में ऑनरेरी डिस्टिंग्विश्ड प्रोफेसर हैं।
उनकी सेवाओं को देखते हुए पद्म भूषण (२०१३), पद्म श्री (२००२), आर्यभट्ट अवॉर्ड, आईईईई साइमन रामो मेडल (२०२०), इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ सिस्टम्स इंजीनियरिंग का ग्लोबल पायनियर अवॉर्ड जैसे दर्जनों सम्मान मिले हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी (आईएनएई) के भी चार साल तक अध्यक्ष रहे।
डॉ. सुरेश ने डॉ. के. सिवन के साथ मिलकर 'इंटीग्रेटेड डिजाइन फॉर स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम' किताब लिखी और 'फ्रॉम फिशिंग हैमलेट टू रेड प्लैनेट' और 'एवर अपवर्ड: इसरो इन इमेज' जैसी किताबों में इसरो की कहानी को संजोया। आज जब चंद्रयान-३ और आदित्य-एल१ जैसी सफलताओं से भारत अंतरिक्ष की महाशक्ति बन रहा है, तो इसके पीछे डॉ. बी.एन. सुरेश जैसे वैज्ञानिकों की मेहनत है।