क्या गणेश घोष एक क्रांतिकारी थे जिन्होंने 27 साल जेल में बिताए?

सारांश
Key Takeaways
- गणेश घोष का जन्म 22 जून 1900 को हुआ।
- उन्होंने 27 साल जेल में बिताए।
- आजादी के बाद कई बार विधायक और सांसद बने।
- चटगांव शस्त्रागार छापे में भाग लिया।
- उनका निधन 16 अक्टूबर 1994 को हुआ।
नई दिल्ली, 21 जून (राष्ट्र प्रेस)। गणेश घोष, एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी और राजनेता थे। आजादी के बाद, उन्होंने कई बार विधायक और सांसद के रूप में कार्य किया और देश के नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गणेश घोष का जन्म चटगांव में एक बंगाली कायस्थ परिवार में 22 जून 1900 को हुआ था। वर्तमान में यह क्षेत्र बांग्लादेश में स्थित है। अपने छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया था। 1922 में गया कांग्रेस में जब बहिष्कार का प्रस्ताव स्वीकार किया गया, तो गणेश घोष और उनके सहयोगी अनंत सिंह ने नगर के सबसे बड़े विद्यालय को बंद कर दिया था। इन दोनों ने चटगाँव की सबसे बड़ी मज़दूर हड़ताल की भी अगुवाई की।
बंगाल टेक्निकल इंस्टीट्यूट में 1922 में दाखिला लेने के बाद, वह चटगांव युगांतर पार्टी के सदस्य बने। 18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन और अन्य क्रांतिकारियों के साथ चटगांव शस्त्रागार छापे में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें चटगांव छोड़ना पड़ा। वह हुगली के चंदननगर में निवास करने लगे। जल्द ही पुलिस कमिश्नर चार्ल्स टेगार्ट ने उनके घर पर छापा मारकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान उनके युवा साथी क्रांतिकारी जीबन घोषाल उर्फ माखन की हत्या कर दी गई थी।
गणेश घोष को गिरफ्तार करने के बाद, उन पर मुकदमा चलाया गया और 1932 में उन्हें पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में भेजा गया। स्वतंत्रता के बाद भी, उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया और अपने जीवन के लगभग 27 वर्ष जेल में बिताए। 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद, गणेश भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़े। 1952, 1957, और 1962 में बेलगछिया से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए चुने गए। 1967 में कलकत्ता दक्षिण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के उम्मीदवार के रूप में चौथी लोकसभा के लिए चुने गए। 1971 की लोकसभा में वह फिर से कलकत्ता दक्षिण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार उन्हें युवा नेता प्रिय रंजन दास मुंशी से हार का सामना करना पड़ा।
गणेश घोष का निधन 16 अक्टूबर 1994 को कोलकाता में हुआ।