क्या है शिवनगरी का गौरी केदारेश्वर मंदिर, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा है?

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क्या है शिवनगरी का गौरी केदारेश्वर मंदिर, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा है?

सारांश

गौरी केदारेश्वर मंदिर का अद्वितीय शिवलिंग, जो दो भागों में विभाजित है, भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस मंदिर में खिचड़ी का भोग अर्पित करने की मान्यता है। जानिए कैसे यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है और सावन के महीने में क्यों है खास।

Key Takeaways

  • गौरी केदारेश्वर मंदिर का शिवलिंग दो भागों में है - भगवान शिव और माता पार्वती, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी।
  • यहां 'खिचड़ी' का भोग अर्पित करने की विशेष मान्यता है।
  • मंदिर की पूजा विधि अन्य शिव मंदिरों से अलग है।
  • सावन में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
  • यह मंदिर ऋषि मान्धाता की भक्ति की कथा से जुड़ा है।

वाराणसी, 9 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महादेव को प्रिय सावन का महीना 11 जुलाई से आरंभ होने वाला है। ऐसे में शिवनगरी काशी के साथ-साथ दुनिया भर के शिवभक्तों में एक अद्भुत उत्साह देखने को मिल रहा है। काशी में भोलेनाथ के अनेक मंदिर हैं, जिनमें से एक विशेष मंदिर है, जो केदार घाट के निकट स्थित गौरी केदारेश्वर का है। यहां का शिवलिंग दो भागों में विभाजित है, जिसमें एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान हैं, जबकि दूसरे भाग में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रतीक है।

काशी के गौरी केदारेश्वर मंदिर में 'खिचड़ी' के भोग का भी विशेष महत्व है। यह मंदिर भगवान शिव की अनुपम कृपा का प्रतीक माना जाता है। यहां की स्वयंभू शिवलिंग की अद्वितीय संरचना और खिचड़ी के भोग की महिमा के लिए भी इसे जाना जाता है। शिवरात्रि के साथ ही सावन, सोमवार और अन्य दिनों में भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

सावन के इस महीने में माता गंगा भी बाबा की चौखट तक आती हैं। भक्त 'हर हर महादेव' के साथ-साथ 'गौरी केदारेश्वराभ्याम नम:' का भी जप करते हैं।

गौरी केदारेश्वर मंदिर का शिवलिंग अपनी संरचना में अद्वितीय है। यह दो भागों में विभक्त है, जिसमें एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान हैं, तो दूसरा भाग भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रतीक है। इस हरिहरात्मक और शिव-शक्त्यात्मक स्वरूप की महिमा शिव पुराण में वर्णित है। मान्यता है कि इस शिवलिंग के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर की पूजन विधि भी अन्य शिव मंदिरों से भिन्न है। यहां ब्राह्मण बिना सिले वस्त्र पहनकर चार पहर की आरती करते हैं। स्वयंभू शिवलिंग पर दूध, बेलपत्र, गंगाजल चढ़ाने के साथ ही खिचड़ी का भोग लगाने की विशेष मान्यता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्वयं भोलेनाथ इस मंदिर में खिचड़ी का भोग ग्रहण करने पधारते हैं। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा ऋषि मान्धाता की भक्ति को जीवंत करती है। शिव पुराण के अनुसार, ऋषि मान्धाता प्रतिदिन हिमालय जाकर भगवान शिव और माता पार्वती को खिचड़ी का भोग अर्पित करते थे। एक बार अस्वस्थ होने पर वे हिमालय नहीं जा सके और दुखी होकर भोलेनाथ से प्रार्थना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गौरी केदारेश्वर स्वयं काशी में प्रकट हुए। भगवान शिव ने स्वयं खिचड़ी का भोग ग्रहण किया और शेष भोग ऋषि के अतिथियों व स्वयं मान्धाता को खिलाया। इसके बाद, भगवान शिव ने घोषणा की कि उनका यह स्वरूप काशी में वास करेगा। उन्होंने खिचड़ी को 'पत्थर से बने शिवलिंग' में परिवर्तित कर दिया, जो दो भागों में विभाजित है।

शिव पुराण के अनुसार, यह शिवलिंग चार युगों में चार रूपों में पूजित होगा। सतयुग में नवरत्नमय, त्रेता में स्वर्णमय, द्वापर में रजतमय और कलयुग में शिलामय। यह शिवलिंग माता अन्नपूर्णा का भी प्रतीक है, जो भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

Point of View

जो उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती के समर्पण की याद दिलाता है। यहां की अद्वितीय पूजा विधि और खिचड़ी का भोग भक्तों के लिए विशेष अनुभव प्रदान करता है।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

गौरी केदारेश्वर मंदिर का शिवलिंग क्यों दो भागों में है?
गौरी केदारेश्वर मंदिर का शिवलिंग दो भागों में है, जिसमें एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती हैं, जबकि दूसरे भाग में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रतीक है।
यहां खिचड़ी का भोग क्यों चढ़ाया जाता है?
यहां खिचड़ी का भोग चढ़ाने की मान्यता है कि भोलेनाथ स्वयं इसे ग्रहण करते हैं और यह भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
गौरी केदारेश्वर मंदिर की पूजन विधि क्या है?
यहां ब्राह्मण बिना सिले वस्त्र पहनकर चार पहर की आरती करते हैं और शिवलिंग पर दूध, बेलपत्र, गंगाजल चढ़ाते हैं।
सावन में इस मंदिर में भक्तों की भीड़ क्यों होती है?
सावन के महीने में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि यह समय महादेव की पूजा का विशेष महीना होता है।
गौरी केदारेश्वर मंदिर का इतिहास क्या है?
इस मंदिर की पौराणिक कथा ऋषि मान्धाता की भक्ति से जुड़ी हुई है, जिन्होंने भगवान शिव को खिचड़ी का भोग अर्पित किया था।