क्या पीएम मोदी ने 'ट्रेकोमा फ्री इंडिया' की उपलब्धि का जिक्र किया?

सारांश
Key Takeaways
- ट्रेकोमा को भारत में खत्म किया गया है।
- डब्ल्यूएचओ ने इस उपलब्धि की पुष्टि की है।
- स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
- यह बीमारी गंदगी और साफ-सफाई की कमी से फैलती है।
- भारत ने सामूहिक प्रयासों से ट्रेकोमा पर नियंत्रण पाया है।
नई दिल्ली, 21 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। एक समय था जब ट्रेकोमा जैसी गंभीर आंखों की बीमारी भारत में अंधेपन का बड़ा कारण बनती थी। गंदगी और इलाज की कमी के कारण यह बीमारी लाखों लोगों को प्रभावित कर रही थी। लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। भारत ने कई वर्षों की मेहनत, जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से इस बीमारी को काफी हद तक पीछे छोड़ दिया है। इसकी पुष्टि स्वयं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने की है। इस उपलब्धि को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गर्व से कई बार देश के समक्ष रखा है। मानसून सत्र से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने एक बार फिर से ट्रेकोमा के विरुद्ध भारत की जीत को एक बड़ी सफलता बताया।
पीएम मोदी ने कहा, ''डब्ल्यूएचओ ने यह कहा है कि भारत ने आंखों की बीमारी ट्रेकोमा से खुद को मुक्त कर लिया है। आरोग्य के क्षेत्र में हम बेहतर काम कर रहे हैं।”
इससे पहले भी पीएम मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में इस पर चर्चा की थी। 29 जून को प्रसारित अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम में उन्होंने देश के स्वास्थ्यकर्मियों, डॉक्टरों और जागरूक नागरिकों को इस उपलब्धि का श्रेय देते हुए कहा कि यह भारत की जन-भागीदारी और स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता का प्रमाण है।
उन्होंने बताया कि ''ट्रेकोमा एक गंभीर संक्रामक नेत्र रोग है, जो आमतौर पर गंदगी, साफ-सफाई की कमी और बैक्टीरिया के संक्रमण से फैलता है। यह आंखों में सूजन उत्पन्न करता है और अगर समय पर इलाज न किया जाए तो अंधेपन का कारण बन सकता है। पहले भारत में यह बीमारी आम थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों ने इस बीमारी के उन्मूलन के लिए विशेष अभियान चलाए। 'स्वच्छ भारत मिशन' और 'जल जीवन मिशन' जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों ने साफ-सफाई और स्वच्छ पेयजल की पहुंच को बढ़ाकर इस बीमारी को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।''
आपको बता दें, ट्रेकोमा एक विशेष बैक्टीरिया (क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस) के कारण होता है। यह बीमारी गंदगी, साफ-सफाई की कमी और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती है। एक शोध के अनुसार, ट्रेकोमा सबसे अधिक बच्चों को प्रभावित करता है, विशेषकर 4 से 6 वर्ष के बच्चों में इसका खतरा ज्यादा रहता है। यह बीमारी धीरे-धीरे आंखों की अंदरूनी सतह को नुकसान पहुंचाती है और समय के साथ पलकें अंदर की ओर मुड़ने लगती हैं, जिससे आंखों में घाव बन सकते हैं और दृष्टि भी जा सकती है।
1971 में भारत में अंधेपन के 5 प्रतिशत से ज्यादा मामलों के लिए ट्रेकोमा को जिम्मेदार माना गया था। इसके बाद भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ ने मिलकर इस बीमारी को खत्म करने के लिए कार्य शुरू किया। 'नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस' जैसी योजनाओं और लोगों को जागरूक करने के प्रयासों से ट्रेकोमा पर नियंत्रण पाया गया। अब भारत इस बीमारी को पूरी तरह समाप्त कर चुका है।