क्या माता सीता का श्राप और पिंडदान की पवित्रता गयाजी की अनूठी महिमा है?

Click to start listening
क्या माता सीता का श्राप और पिंडदान की पवित्रता गयाजी की अनूठी महिमा है?

सारांश

गयाजी का पवित्रता और माता सीता का श्राप पितृ पक्ष में श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहां पिंडदान से 108 कुलों का उद्धार होता है। जानें इस स्थान की खासियत और इसके पीछे की रोचक कहानी।

Key Takeaways

  • गयाजी को मोक्षस्थली माना जाता है।
  • पिंडदान के लिए यहां लाखों श्रद्धालु जुटते हैं।
  • माता सीता का श्राप और पिंडदान की परंपरा गयाजी की पहचान है।

गयाजी, ८ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में पितरों के उद्धार और श्राद्ध क्रिया के लिए बहुत से तीर्थ स्थल बताए गए हैं, लेकिन इन सभी में गयाजी का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। फल्गु नदी के किनारे बसा यह पवित्र नगर मोक्ष की भूमि के रूप में जाना जाता है। मान्यता के अनुसार, यहां पिंडदान करने से १०८ कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि पितृपक्ष के दौरान हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं।

गयाजी का उल्लेख वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। यह माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों की आत्मा जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाती है।

रामायण के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने यहीं फल्गु नदी के किनारे राजा दशरथ का पिंडदान किया था। महाभारत काल में भी पांडवों ने गया आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म किया था।

गया नगरी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा भी बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है कि यहां गयासुर नामक असुर ने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि उसके दर्शन मात्र से लोग पापमुक्त हो जाएं। धीरे-धीरे लोग पाप करते रहे और उसके दर्शन से मुक्त होने लगे। इससे स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ गया। परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी।

भगवान विष्णु ने गयासुर से यज्ञ के लिए उसका शरीर मांगा। गयासुर ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद विष्णु ने उसे मोक्ष देते हुए आशीर्वाद दिया कि जहां-जहां उसका शरीर फैलेगा, वह स्थान पवित्र होगा और वहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होगा। मान्यता है कि आज की गया नगरी गयासुर के शरीर के पत्थर रूप में फैलने से बनी है।

जब प्रभु राम का वनवास हुआ और राजा दशरथ का देहांत हुआ, तब श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृपक्ष के दौरान गया पहुंचे। राम और लक्ष्मण श्राद्ध सामग्री लेने नगर गए और माता सीता अकेले फल्गु नदी तट पर बैठ गईं। इसी दौरान दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और पिंडदान की प्रार्थना की। प्रारंभ में सीता ने कहा कि पुत्रों के रहते हुए पुत्रवधु पिंडदान कैसे कर सकती है, लेकिन दशरथ ने बताया कि नियमों के अनुसार पुत्रवधु भी श्राद्ध कर सकती है। शुभ मुहूर्त बीतते देख माता सीता ने पिंडदान कर दिया।

कहा जाता है कि सीता जी के पास कुछ नहीं था, इसीलिए उन्होंने नदी से बालू निकालकर पिंडदान किया था। इसके बाद से आज भी फल्गु नदी के तट पर बालू से पिंडदान किया जाता है।

पिंडदान के समय सीता ने फल्गु नदी, गाय, केतकी फूल और वटवृक्ष को गवाह बनाया। लेकिन, जब राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता की बात पर विश्वास नहीं कर पाए। सीता ने गवाह बुलाए तो तीन ने झूठ बोला, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल। केवल वटवृक्ष ने सच बोला। इसके बाद माता सीता क्रोधित हो गईं और तीनों को श्राप दिया।

उन्होंने फल्गु नदी को श्राप दिया कि उसका जल सूख जाएगा। गाय को पवित्र होकर भी मनुष्यों की जूठन खाने का श्राप दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह किसी भी देवी-देवता की पूजा में नहीं चढ़ाया जाएगा। वहीं, सत्य बोलने वाले वटवृक्ष को उन्होंने दीर्घायु होने का वरदान दिया।

माता सीता के श्राप के प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं। फल्गु नदी में जल नहीं है, पिंडदान रेत से होता है, गाय पूजनीय है लेकिन जूठन खाती है और केतकी का फूल पूजा में नहीं चढ़ता।

हर साल पितृपक्ष के दौरान गया में विशाल मेला लगता है। लाखों श्रद्धालु यहां पिंडदान और तर्पण के लिए जुटते हैं। यह स्थल केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं, बल्कि बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी पवित्र है। समीप स्थित बोधगया वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति की थी। इस कारण गया न केवल मोक्षस्थली है बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र भी है।

Point of View

बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहरी जड़ें भी दर्शाता है। यहां की पवित्रता और श्राद्ध कर्म का महत्व सभी श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय है।
NationPress
08/09/2025

Frequently Asked Questions

गया में पिंडदान क्यों किया जाता है?
गया में पिंडदान करने से 108 कुलों और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है।
माता सीता का श्राप क्या है?
माता सीता ने फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल को श्राप दिया कि वे पवित्र होते हुए भी विशेषता खो देंगे।
गया की उत्पत्ति की कहानी क्या है?
गया की उत्पत्ति गयासुर नामक असुर की तपस्या से जुड़ी हुई है, जिसने ब्रह्माजी से पवित्रता का वरदान मांगा था।
क्या गया केवल हिंदुओं के लिए पवित्र है?
नहीं, गया बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
पितृपक्ष में गया में क्या विशेष होता है?
पितृपक्ष में गया में विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पिंडदान और तर्पण के लिए जुटते हैं।