क्या आईआईटीएफ 2025 में झारखंड की सोहराय–पैतकर कला और खादी का आकर्षण बढ़ रहा है?
सारांश
Key Takeaways
- झारखंड पवेलियन ने कला और संस्कृति का अनूठा प्रदर्शन किया है।
- सोहराय और पैतकर कला ने दर्शकों का ध्यान खींचा है।
- खादी उत्पादों की गुणवत्ता उच्च है।
- स्थानीय कारीगरों को नए बाजार अवसर मिल रहे हैं।
- सरकार की पहल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 24 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत मंडपम कॉम्प्लेक्स में आयोजित भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में झारखंड पवेलियन इस साल कला, संस्कृति और कारीगर सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है। सोमवार को उद्योग सचिव-सह-स्थानिक आयुक्त अरवा राजकमल ने सभी स्टॉलों का अवलोकन किया और आवश्यक दिशा-निर्देश भी प्रदान किए।
पवेलियन में प्रदर्शित राज्य की समृद्ध लोककलाएं, खासकर पैतकर और सोहराय कला, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने वाली सरकारी पहलों ने देशभर से आए दर्शकों का विशेष ध्यान आकर्षित किया है।
झारखंड सरकार एवं मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड की निरंतर पहल के चलते पवेलियन में पारंपरिक पैतकर और सोहराय कला को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो बड़ी संख्या में विजिटर्स के लिए प्रमुख आकर्षण बना हुआ है।
पवेलियन में प्रदर्शित सोहराय, खोवर, जादोपटिया और पैतकर पेंटिंग्स न केवल राज्य की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती हैं, बल्कि स्थानीय कारीगरों की पीढ़ियों पुरानी कलाओं को नए बाजार अवसरों से भी जोड़ रही हैं।
पैतकर कला, सिंहभूम की विशेष कथात्मक शैली, सिंदूर, गेरू और खनिज रंगों से पुनर्नवीनीकृत कागज पर बनाई जाती है। इसके प्रमुख विषय लोककथाएं, जीवन–मरण चक्र, जन्म वृत्तांत और कृष्ण लीला हैं। स्टॉल संचालक गणेश गायन व जंतु गोपे बताते हैं कि रंग पत्थर को चंदन की तरह घिसकर तैयार किए जाते हैं, जिनमें प्राकृतिक पेंट, नीम और बबूल का गोंद मिलाया जाता है, जिससे पेंटिंग लंबे समय तक सुरक्षित रहती है।
झारखंड की विश्व-प्रसिद्ध सोहराय खोवर पेंटिंग अपनी विशिष्ट रेखाओं, बिंदुओं और पशु आकृतियों के लिए जानी जाती है। वर्ष 2020 में इस कला को जीआई टैग प्रदान किया गया, जिससे इसकी पारंपरिक पहचान को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नई मान्यता मिली। हाल के वर्षों में खोवर कला का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। पारंपरिक दीवारों से निकलकर यह कला अब वस्त्रों, होम डेकोर और लाइफस्टाइल उत्पादों पर बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है, जिससे स्थानीय कारीगरों को नए बाजार और पहचान मिल रही है। स्टॉल संचालक सन्तु कुमार ने बताया कि सोहराय कला की सबसे खास बात इसके प्राकृतिक रंग हैं, जो लाल-पीली मिट्टी, कोयला और चूना से तैयार किए जाते हैं।
पवेलियन का खादी स्टॉल भी अत्यधिक लोकप्रिय रहा, जहां स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार प्राकृतिक फाइबर आधारित हाथ से काता सूत, देशी कताई-बुनाई की उत्कृष्ट गुणवत्ता और प्राकृतिक रंगों से रंगे वस्त्रों ने दर्शको की बड़ी संख्या को आकर्षित किया। खादी स्टॉल में दर्शको को झारखण्ड की प्रसिद्ध तसर सिल्क, कटिया सिल्क, और झारखंड खादी अपनी मुलायम बनावट, मौसम के अनुरूप आरामदायक पहनावे, टिकाऊपन और पूरी तरह पर्यावरण अनुकूलता के कारण दर्शकों को भा रही है।
झारखंड पवेलियन न केवल परंपरागत कला का प्रदर्शन स्थल बना, बल्कि सरकार की नीतिगत प्रतिबद्धता, कारीगरों की मेहनत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की व्यापक दृष्टि का जीवंत प्रतीक भी सिद्ध हुआ है।