क्या प्राचीन शैली का नौसैनिक पोत कौंडिन्य अपनी पहली यात्रा पर रवाना होगा?

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क्या प्राचीन शैली का नौसैनिक पोत कौंडिन्य अपनी पहली यात्रा पर रवाना होगा?

सारांश

आईएनएसवी कौंडिन्य की पहली यात्रा में समृद्ध भारतीय समुद्री परंपराओं का जश्न मनाया जाएगा। यह पोत प्राचीन तकनीक से बना है और समुद्री मार्गों को पुनः जीवित करेगा। जानें इस अद्भुत यात्रा के बारे में!

Key Takeaways

  • नौसैनिक पोत कौंडिन्य की पहली यात्रा 29 दिसंबर को होगी।
  • यह प्राचीन पाल विधि से निर्मित है।
  • गुजरात से ओमान तक का समुद्री मार्ग यात्रा का हिस्सा है।
  • यह यात्रा भारत की समुद्री परंपराओं को पुनः जीवित करेगी।
  • कौंडिन्य का नाम एक पौराणिक नाविक के नाम पर रखा गया है।

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय नौसेना का आईएनएसवी कौंडिन्य अपनी पहली समुद्री यात्रा पर रवाना होने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इस नौसैनिक पोत की विशिष्टता यह है कि यह एक प्राचीन पाल विधि से निर्मित पोत है।

यह पोत गुजरात के पोरबंदर से ओमान के मस्कट तक की यात्रा करेगा। इस दौरान यह प्रतीकात्मक रूप से उन ऐतिहासिक समुद्री मार्गों का पुनर्मूल्यांकन करेगा जिन्होंने सहस्राब्दियों से भारत को व्यापक हिंद महासागर दुनिया से जोड़ा है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह महत्वपूर्ण यात्रा 29 दिसंबर को शुरू होने जा रही है। अपनी इस यात्रा के जरिए यह पोत भारत की प्राचीन जहाज निर्माण और समुद्री परंपराओं को पुनः साकार करेगा।

इसे प्राचीन भारतीय पोतों के चित्रण से प्रेरणा लेते हुए पूरी तरह से पारंपरिक सिलाई-तख्ता तकनीक का उपयोग करके निर्मित किया गया है। रक्षा मंत्रालय का कहना है कि आईएनएसवी कौंडिन्य इतिहास, शिल्प कौशल और आधुनिक नौसैनिक विशेषज्ञता का एक दुर्लभ संगम है। समकालीन पोतों के विपरीत, इसके लकड़ी के तख्तों को नारियल के रेशे की रस्सी से सिला गया है और प्राकृतिक रेजिन से सील किया गया है। यह भारत के तटों और हिंद महासागर में प्राचीन समय में प्रचलित पोत निर्माण की परंपरा को दर्शाता है।

इस तकनीक ने भारतीय नाविकों को आधुनिक नौवहन और धातु विज्ञान के आगमन से बहुत पहले पश्चिम एशिया, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया तक लंबी दूरी की यात्राएं करने में सक्षम बनाया था। इस परियोजना का आरंभ केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और होडी इनोवेशन्स के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से किया गया था। यह भारत द्वारा स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को पुनः खोजने और उन्हें पुनः निर्मित करने के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पोत मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन के मार्गदर्शन में पारंपरिक शिल्पियों द्वारा निर्मित है।

भारतीय नौसेना एवं शैक्षणिक संस्थानों द्वारा व्यापक अनुसंधान, डिजाइन और परीक्षण के सहयोग से, यह पोत पूरी तरह से समुद्र में यात्रा करने योग्य और महासागर में नौकायन में सक्षम है। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इस पोत का नाम पौराणिक नाविक कौंडिन्य के नाम पर रखा गया है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने प्राचीन काल में भारत से दक्षिण पूर्व एशिया तक की यात्रा की थी। यह पोत एक समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत की ऐतिहासिक भूमिका का भी प्रतीक है।

Point of View

यह यात्रा न केवल भारतीय नौसेना की क्षमताओं को दर्शाती है, बल्कि यह हमारी समृद्ध समुद्री परंपरा और इतिहास को भी उजागर करती है। आईएनएसवी कौंडिन्य की यह यात्रा भारत के लिए गर्व का क्षण है।
NationPress
23/12/2025

Frequently Asked Questions

आईएनएसवी कौंडिन्य कब रवाना होगा?
आईएनएसवी कौंडिन्य 29 दिसंबर को अपनी पहली समुद्री यात्रा पर रवाना होगा।
यह पोत किस तकनीक से बना है?
यह पोत प्राचीन पाल विधि से निर्मित है, जिसमें पारंपरिक सिलाई-तख्ता तकनीक का उपयोग किया गया है।
कौंडिन्य का नाम किस पर रखा गया है?
इस पोत का नाम पौराणिक नाविक कौंडिन्य के नाम पर रखा गया है।
इस यात्रा का उद्देश्य क्या है?
यह यात्रा भारत की प्राचीन समुद्री परंपराओं को पुनः जीवित करने और ऐतिहासिक समुद्री मार्गों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए है।
यह पोत किस क्षेत्र में यात्रा करेगा?
यह पोत गुजरात के पोरबंदर से ओमान के मस्कट तक की यात्रा करेगा।
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