क्या आज भी जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा होती है? जानिए रहस्य

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क्या आज भी जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा होती है? जानिए रहस्य

सारांश

जगन्नाथ मंदिर की अधूरी मूर्तियों के रहस्य को जानने के लिए इस लेख को पढ़ें। क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण के हृदय की कहानी से जुड़ी यह पूजा आज भी क्यों होती है?

Key Takeaways

  • जगन्नाथ धाम हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण स्थल है।
  • भगवान कृष्ण के हृदय की कथा से जुड़ी है पूजा।
  • हर 12 साल में नवकलेवर उत्सव मनाया जाता है।
  • पुरानी मूर्तियों को 'कोइली वैकुंठ' में दफनाया जाता है।
  • भगवान विश्वकर्मा ने अधूरी मूर्तियों का निर्माण किया।

पुरी, 4 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ धाम हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। इसे भगवान कृष्ण के दिल की धड़कन माना जाता है। यहां सिर्फ भगवान जगन्नाथ ही नहीं, बल्कि उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मंदिर में विराजमान तीनों ही मूर्तियां आज भी अधूरी हैं, जबकि हर 12 साल में इन मूर्तियों को बदला जाता है।

इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण ने इस धरती से प्रस्थान किया, तो उनका शरीर दाह किया गया, लेकिन उनका हृदय जल नहीं पाया। पांडवों ने इसे पवित्र नदी में प्रवाहित किया। वहीं से यह लठ्ठे के रूप में बदल गया। भगवान ने स्वप्न में राजा इंद्रदयुम्न को इसकी सूचना दी, जिसके बाद राजा ने एक कुशल कारीगर से मूर्तियां बनाने का आदेश दिया।

तीनों लोकों के सबसे कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा एक बुजुर्ग का रूप धारण कर आए और तीनों मूर्तियां बनाने के लिए राजी हो गए। लेकिन उन्होंने राजा के समक्ष एक शर्त रखी कि वे 21 दिन में एक कमरे में अकेले काम करेंगे और कोई दरवाजा नहीं खोलेगा। रोज आरी, हथौड़ी और छेनी की आवाजें आती रहीं, लेकिन एक दिन अचानक आवाज बंद हो गई। राजा चिंतित हो गए और उन्होंने दरवाजा खोल दिया। तब तक भगवान विश्वकर्मा गायब हो चुके थे और कमरे में मूर्तियां अधूरी रह गई थीं। इसे भगवान की इच्छा मानकर राजा ने अधूरी मूर्तियों की ही पूजा करनी शुरू कर दी। तब से आज तक जगन्नाथ पुरी में अधूरी मूर्तियों की ही पूजा की जाती है।

इसके अलावा, हर 12 साल में नवकलेवर उत्सव का आयोजन होता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पुरानी लकड़ी की मूर्तियों को बदल दिया जाता है। इसके लिए खास नीम के पेड़ चुने जाते हैं, जिन पर शंख, चक्र, गदा या पद्म के निशान हों और जो नदी या श्मशान के पास खड़े हों। पुरानी मूर्तियों को ‘कोइली वैकुंठ’ में दफनाया जाता है, जिसे धरती पर वैकुंठ कहा जाता है।

Point of View

जो न केवल इतिहास को दर्शाता है, बल्कि आस्था और विश्वास को भी मजबूती प्रदान करता है।
NationPress
04/11/2025

Frequently Asked Questions

जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा का कारण क्या है?
जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा का कारण भगवान कृष्ण के हृदय की कहानी से जुड़ा है, जहाँ भगवान विश्वकर्मा ने मूर्तियों को अधूरा छोड़ दिया था।
नवकलेवर उत्सव कब मनाया जाता है?
नवकलेवर उत्सव हर 12 साल में मनाया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ की पुरानी मूर्तियों को बदल दिया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर कहाँ स्थित है?
जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है, जो हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।