क्या पंडित नेहरू की सबसे बड़ी भूल 1960 की सिंधु जल संधि थी? : जेपी नड्डा

Click to start listening
क्या पंडित नेहरू की सबसे बड़ी भूल 1960 की सिंधु जल संधि थी? : जेपी नड्डा

सारांश

जेपी नड्डा ने कहा है कि 1960 की सिंधु जल संधि ने भारत के लिए एक बड़ी भूल साबित हुई। उन्होंने इस समझौते को लेकर पंडित नेहरू की आलोचना की और कहा कि यह निर्णय भारत की जल सुरक्षा को खतरे में डालने वाला था। जानिए इस विवादास्पद समझौते की पूरी कहानी।

Key Takeaways

  • 1960 की सिंधु जल संधि भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
  • जेपी नड्डा ने इसे पंडित नेहरू की भूल बताया।
  • संविधान की अवहेलना की गई थी।
  • अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संधि की कड़ी आलोचना की।
  • भारत ने जून में सिंधु जल संधि को स्थगित किया।

नई दिल्ली, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से सिंधु जल समझौता को स्थगित कर दिया है। इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि 1960 का सिंधु जल संधि, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सबसे बड़ी भूलों में से एक थी, जिसमें राष्ट्रीय हितों को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ा दिया गया।

जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए कहा कि देशवासियों को यह जानना चाहिए कि जब पूर्व पंडित नेहरू ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, तब उन्होंने एकतरफा तरीके से सिंधु बेसिन का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को सौंप दिया था, जिससे भारत के पास केवल 20 प्रतिशत हिस्सा रह गया। यह ऐसा निर्णय था, जिसने भारत की जल सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को हमेशा के लिए खतरे में डाल दिया।

उन्होंने आगे कहा कि सबसे चिंताजनक पहलू यह था कि उन्होंने यह निर्णय भारतीय संसद से परामर्श किए बिना लिया। इस संधि पर सितंबर 1960 में हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन इसे संसद में केवल दो महीने बाद नवंबर में और वह भी केवल दो घंटे की औपचारिक चर्चा के लिए रखा गया था।

उन्होंने कहा कि इसे इतिहास में नेहरू का हिमालयन ब्लंडर कहा जाना चाहिए। एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसने संसद की अनदेखी की, भारत की जीवनरेखा को दांव पर लगाया और पीढ़ियों तक भारत के हाथ बांध दिए। आज यदि प्रधानमंत्री मोदी का साहसिक नेतृत्व और राष्ट्र प्रथम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता नहीं होती, तो भारत एक व्यक्ति के गलत आदर्शवाद की कीमत चुकाता रहता। सिंधु जल संधि को स्थगित करके प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस द्वारा की गई एक और गंभीर ऐतिहासिक भूल को सुधारने का कार्य किया है।

जेपी नड्डा ने आगे कहा कि पंडित नेहरू ने अपनी पार्टी के सहयोगियों के कड़े विरोध के बावजूद सिंधु जल संधि को भारत के लिए लाभकारी बताते हुए उसका बचाव किया। यदि इतना भी पर्याप्त नहीं था, तो उन्होंने यह पूछकर देश की पीड़ा को कम आंका, "किसका बंटवारा? एक बाल्टी पानी का?" उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने भारत के महत्वपूर्ण संसाधनों को सौंपने वाली अंतरराष्ट्रीय संधियों के मामले में संसदीय अनुमोदन की परवाह किए बिना यह निर्णय लिया था।

चोट पर नमक छिड़कते हुए, उन्होंने राष्ट्रीय हित की बात करने वाले साथी सांसदों की राय को ‘बहुत संकीर्ण’ बताकर उनका उपहास किया।

एक युवा सांसद, अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरू की सिंधु जल संधि की कड़ी आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि प्रधानमंत्री का यह तर्क कि पाकिस्तान की अनुचित मांगों के आगे झुकने से मित्रता और सद्भावना स्थापित होगी, त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने तर्क किया कि सच्ची मित्रता अन्याय पर आधारित नहीं हो सकती। यदि पाकिस्तान की अनुचित मांगों का विरोध करने से रिश्ते तनावपूर्ण होते हैं, तो ऐसा ही हो। अटल ने राष्ट्रीय हित को हर चीज से ऊपर रखने में स्पष्टता दिखाई थी।

जेपी नड्डा ने आगे कहा कि कांग्रेस के एसी गुहा ने भारत के विदेशी मुद्रा संकट के दौरान पाकिस्तान को 83 करोड़ रुपए स्टर्लिंग में भुगतान करने की आलोचना की। उन्होंने इसे ‘मूर्खता की पराकाष्ठा’ बताया। गुहा ने चेतावनी दी कि जिस तरह से संसद की अवहेलना की गई है, "यह एक अधिनायकवादी सरकार का रवैया हो सकता है।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि "जब पाकिस्तान भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने के मूड में नहीं है, तो भारत को पाकिस्तान को खुश करने के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी क्यों देनी चाहिए?"

उन्होंने आगे कहा कि यह इतनी बड़ी भूल थी कि पंडित नेहरू की अपनी पार्टी के सांसदों ने भी इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने बहुत कुछ किया, लेकिन बदले में कुछ भी नहीं पाया। कांग्रेस के अशोक मेहता ने इस संधि की कड़ी आलोचना की और इसे देश के लिए ‘दूसरे विभाजन’ जैसा बताया। उनके शब्दों ने न केवल उनकी अपनी पार्टी के भीतर, बल्कि पूरे विपक्ष और पूरे देश में नेहरू के पूर्ण समर्पण पर महसूस किए गए दुःख और सदमे को व्यक्त किया।

Point of View

यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने देश के हितों को प्राथमिकता दें। पंडित नेहरू द्वारा की गई सिंधु जल संधि के निर्णय पर विचार करते समय, हमें यह समझना चाहिए कि यह निर्णय न केवल वर्तमान के लिए, बल्कि भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। हमें अपने जल संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
NationPress
18/08/2025

Frequently Asked Questions

सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक समझौता है, जिसमें सिंधु नदी के जल के उपयोग का बंटवारा किया गया था।
जेपी नड्डा ने सिंधु जल संधि के बारे में क्या कहा?
जेपी नड्डा ने कहा कि यह समझौता पंडित नेहरू की सबसे बड़ी भूलों में से एक थी, जिसमें भारत के जल हितों को खतरे में डाल दिया गया।
क्या सिंधु जल संधि को स्थगित किया गया है?
जी हां, जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है।
इस संधि के परिणाम क्या थे?
इस संधि ने भारत के जल संसाधनों को सीमित किया और राष्ट्रीय हितों को खतरे में डाल दिया।
क्या अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संधि की आलोचना की थी?
हाँ, अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संधि की कड़ी आलोचना की और इसे राष्ट्रीय हितों के खिलाफ बताया।