कांवड़ियों की पहली पसंद भगवा क्यों है?

सारांश
Key Takeaways
- भगवा रंग शिव भक्ति का प्रतीक है।
- कांवड़ यात्रा आस्था और विश्वास को दर्शाती है।
- इस यात्रा में सात्विक भोजन का महत्व है।
- भगवा वस्त्र पहनने से आत्मविश्वास बढ़ता है।
- कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि समाज की एकता का प्रतीक है।
नई दिल्ली, 12 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सावन का महीना आते ही भगवा रंग की छटा हर ओर बिखरने लगती है। सड़कों पर भगवा वस्त्र पहने कांवड़िए दिखाई दे रहे हैं, जो अपने कंधे पर कांवड़ उठाए, भोलेनाथ का नाम लेते हुए पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कांवड़िए हमेशा भगवा कपड़ों में ही क्यों होते हैं? दूसरे रंग के कपड़े क्यों नहीं पहनते? इसके पीछे एक गहरा और सुंदर अर्थ है।
दरअसल, कांवड़ियों के लिए यह भगवा रंग केवल एक कपड़ा नहीं है, बल्कि भगवान शिव के प्रति उनकी सच्ची भक्ति, त्याग और संकल्प का प्रतीक है। यही रंग दर्शाता है कि ये भक्त अब दुनियावी मोह-माया से ऊपर उठकर केवल भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो चुके हैं। कांवड़ यात्रा सावन के महीने में होती है, जो भगवान शिव का प्रिय महीना है। इस दौरान माना जाता है कि भोलेनाथ धरती पर अपने भक्तों की पुकार जल्दी सुनते हैं और उनकी इच्छाएं पूरी करते हैं।
भगवान शिव को खुश करने के लिए भक्त कई दिनों तक पैदल चलते हैं, रात भर जागते हैं, तप करते हैं और पूरे रास्ते भोलेनाथ का नाम जपते रहते हैं। इस दौरान कांवड़िए कई नियमों का पालन करते हैं। वे केवल सात्विक भोजन करते हैं, झूठ नहीं बोलते और मन को शांत रखते हैं। यही वजह है कि कांवड़ यात्रा को तप और सेवा का रूप माना जाता है। भगवा रंग का इस यात्रा में खास महत्व है। यह केवल साधुओं का प्रतीक नहीं, बल्कि त्याग और संयम का भी प्रतीक है। भगवा वस्त्र पहनने का अर्थ है कि कांवड़िया अब शिव की सेवा में है और उसने दुनियावी इच्छाओं से दूरी बना ली है।
भगवा रंग पहनने से कांवड़ियों को एक अद्वितीय ऊर्जा मिलती है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और हर मुश्किल में उनका हौसला मजबूत रहता है। इसी कारण हर साल लाखों भक्त इस यात्रा में शामिल होते हैं और भगवा कपड़े पहनकर भोलेनाथ का नाम लेते हुए आगे बढ़ते हैं।
सावन शिवरात्रि तक चलने वाली यह यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि लोगों की आस्था, विश्वास और भक्ति का एक सटीक उदाहरण है।