क्या ग्रामीण पर्यटन में कारिकोट ने पेश की मिसाल, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से बढ़ाया मान?

सारांश
Key Takeaways
- कारिकोट गांव को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला है।
- गांव ने होम स्टे की पहल शुरू की है।
- इससे स्थानीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है।
- जिम्मेदार पर्यटन का एक मॉडल बन चुका है।
- स्थानीय महिलाओं को रोजगार के अवसर मिले हैं।
लखनऊ, 15 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के कारिकोट गांव को ‘इंडियन सबकांटिनेंटल रिस्पांसिबल टूरिज्म (आईसीआरटी) अवार्ड 2025’ से सम्मानित किया गया है। भारत-नेपाल सीमा के निकट स्थित यह गांव ग्रामीण पर्यटन में एक आदर्श के रूप में उभरा है। पर्यटन विभाग की पहल पर स्थानीय लोगों ने होम स्टे की शुरुआत की, जिससे गांव को वैश्विक पहचान मिली। यह पुरस्कार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रदान किया गया।
उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार कारिकोट के साथ-साथ पूरे प्रदेश का मान बढ़ाता है। उन्होंने बताया कि 'कारिकोट गांव को मिला यह सम्मान विभागीय प्रयासों का परिणाम है। गांव ने ग्रामीण पर्यटन में विशेष पहचान बनाई है और सीमा पर्यटन जैसी अभिनव पहलों को भी अपनाया है। इन प्रयासों से स्थानीय समुदाय, विशेषकर युवाओं और महिलाओं को रोजगार मिला है तथा गांव की संस्कृति, व्यंजन, हस्तशिल्प और लोक कलाओं को नई पहचान मिली है।
उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा प्रदान किए गए इस पुरस्कार को बहराइच के मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) मुकेश चंद्र, ग्राम सचिव सुशील कुमार सिंह और ग्राम प्रधान पार्वती ने ग्रहण किया। 'इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिस्पांसिबल टूरिज्म' (आईसीआरटी) द्वारा कारिकोट गांव को ‘शांति एवं आपसी समझ’ श्रेणी में प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किया गया है। निर्णायक मंडल द्वारा इस उपलब्धि के लिए गांव को सिल्वर श्रेणी में यह पुरस्कार दिया गया। आईसीआरटी द्वारा दिए जाने वाले ये पुरस्कार जिम्मेदार और सतत पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
कारिकोट गांव के लिए यह उपलब्धि ग्रामीण पर्यटन मॉडल को और मजबूत करने तथा शांति, सद्भाव और समावेशिता के मूल्यों को आगे बढ़ाने में प्रेरणा बनेगी। यह गांव कारीकोट गांव भारत-नेपाल सीमा और हरे-भरे कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के पास स्थित है। यह गांव जिम्मेदार पर्यटन (रिस्पांसिबल टूरिज्म) के एक वैश्विक मॉडल के रूप में उभरा है। कारीकोट गांव के किसान ग्रामीण पर्यटन के अलावा बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती करते हैं। इन हल्दी की खेती की जिम्मेदारी ग्रामीण महिलाओं पर है। हल्दी की खेती से महिलाएं आत्मनिर्भर होकर अच्छा मुनाफा भी कमा रही हैं।
स्थानीय थारू समुदाय सहित समाज के अन्य लोगों की भागीदारी क्षेत्र में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दे रही है। प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा, 'उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ग्रामीण पर्यटन को लगातार प्रोत्साहित कर रहा है। विभाग का उद्देश्य राज्य को धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में भी विशिष्ट पहचान दिलाना है। राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश के गांव केवल कृषि और परंपराओं के केंद्र नहीं हैं, बल्कि संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और सामाजिक समरसता के भी प्रतीक हैं। रूरल टूरिज्म के माध्यम से इन विशेषताओं को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जा रहा है।'
विशेष सचिव पर्यटन ईशा प्रिया ने कहा, 'प्रदेश में ग्रामीण पर्यटन को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। 'उत्तर प्रदेश ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट एवं होम स्टे नीति-2025’ सहित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रूरल टूरिज्म को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी कड़ी में कारिकोट गांव को मिला सम्मान विभागीय प्रयासों और ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में सफलता का परिणाम है।'
कारिकोट के ग्राम पंचायत सचिव सुशील कुमार सिंह ने पुरस्कार ग्रहण करने के पश्चात बताया कि 'कारीकोट सेंक्चुरी एरिया से घिरा क्षेत्र है, जहां विभागीय सहयोग से ग्रामीण पर्यटन और होम स्टे ने गांव की तस्वीर बदल दी है। इससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई है। सिंह ने बताया कि कारिकोट के पास नेपाल की दो नदियों गेरुआ और कोरियाला का संगम अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। यहां सिंचाई विभाग द्वारा बनाए गए डैम को देखने का भी पर्यटकों में खास आकर्षण है। आगंतुकों को क्षेत्र की विविध जीवनशैली, स्थानीय व्यंजन और हल्दी की फसल तैयार होते देखने का सुखद अनुभव मिलता है। प्रदेश और पड़ोसी राज्यों से यहां बड़े पैमाने पर पर्यटक पहुंच रहे हैं।