क्या कश्मीर घाटी में दशहरा उत्सव ने नया उत्साह भरा?

Key Takeaways
- दशहरा उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- यह उत्सव सामुदायिक एकता को बढ़ावा देता है।
- कश्मीरी पंडितों की सक्रिय भागीदारी इस उत्सव को खास बनाती है।
- रावण दहन एक पारंपरिक अनुष्ठान है।
- यह पर्व शांति और सौहार्द का संदेश फैलाता है।
बरामूला, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की कश्मीर घाटी में इस वर्ष दशहरा उत्सव को बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया गया। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और घाटी के विभिन्न हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
उत्तर कश्मीर के बरामूला जिले में खुजाबाग प्रवासी कॉलोनी में आयोजित मुख्य समारोह विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बना। यहां 10 फुट ऊंचे रावण के पुतले को जलाया गया, जो भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है और हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस आयोजन ने धार्मिक महत्व के साथ-साथ सामुदायिक एकता को भी मजबूत किया।
इस समारोह में विभिन्न समुदायों के लोग शामिल हुए, विशेषकर कश्मीरी पंडित, जिन्होंने घाटी में अल्पसंख्यक होने के बावजूद अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने का जज्बा प्रदर्शित किया।
कश्मीरी पंडित अश्विनी ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि हमने सुबह से ही दशहरे की तैयारी शुरू कर दी थी। पूरे दिन कॉलोनी में भजन-कीर्तन चलता रहा और शाम को रावण दहन किया गया। यहां कई वर्षों से यह कार्यक्रम मनाया जा रहा है। कश्मीर घाटी में दशहरा मनाना हमें हमारी जड़ों और साझा परंपराओं से जोड़े रखता है। यह उत्सव हमारे लिए एकता, आशा और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।
कश्मीरी पंडित रोहित रैना ने कहा कि कश्मीर में दशहरा का विशेष महत्व है। यह उत्सव हमारी धार्मिक आस्था को मजबूत करने के साथ-साथ समुदाय में एकजुटता और भाईचारे की भावना को भी बढ़ावा देता है।
उन्होंने बताया कि इस अवसर पर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी में उत्साह दिखाई दे रहा है। यह उत्सव कश्मीर घाटी में शांति और सौहार्द का संदेश लेकर आया है, जिसने समुदायों को एक मंच पर लाकर उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत किया। हम हर साल एक साथ आकर सभी उत्सव मनाते हैं।