क्या कोलकाता में नवपत्रिका स्नान के साथ दुर्गा पूजा की सप्तमी शुरू हुई?

सारांश
Key Takeaways
- नवपत्रिका स्नान मां दुर्गा के स्वागत का महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
- दुर्गा पूजा के दौरान भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है।
- हर पंडाल में प्रशासन की विशेष व्यवस्था होती है।
- दुर्गा पूजा का उत्सव संस्कृति और एकता का प्रतीक है।
- पूजा की शुरुआत पंचमी से होती है।
कोलकाता, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। मां दुर्गा के स्वागत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान, नवपत्रिका स्नान के साथ कोलकाता में दुर्गा पूजा की सप्तमी भव्यता के साथ आरंभ हो गई है। सुबह सूर्योदय से पहले ही शहर के पूजा पंडालों और घाटों पर भक्तों की भीड़ जुटी रही, जहाँ इस पारंपरिक अनुष्ठान को पूरी विधि-विधान से संपन्न किया गया।
नवपत्रिका में नौ विभिन्न पेड़-पौधों की पत्तियाँ और टहनियाँ (जैसे केला, अरबी, हल्दी, धान, बेल, दालिम, अशोक, मान और दारिम) को केले के पौधे के साथ बांधकर तैयार किया जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, यह देवी दुर्गा का प्रतीकात्मक रूप है, जो देवी को कृषि और उर्वरता से जोड़ता है।
सप्तमी की सुबह इस नवपत्रिका को पवित्र गंगाजल या पास के किसी सरोवर में प्रतीकात्मक स्नान कराया गया। स्नान के बाद इसे पूजा मंडप में लाकर देवी दुर्गा के साथ स्थापित किया जाता है। अतः इसे कई बार 'कोलाबोऊ पूजा' भी कहा जाता है। इस अनुष्ठान के साथ ही पूरे महानगर में उत्सव का माहौल है। सुबह से ही गलियों और मोहल्लों में शंखध्वनि, ढाक की ताल और उलूध्वनि गूंजने लगी।
भक्तों के अनुसार, नवपत्रिका स्नान ही दुर्गा पूजा की सही मायनों में शुरुआत है और इसके माध्यम से वे मां का स्वागत करते हैं। इस अनुष्ठान के बाद ही कोलकाता में उत्सव का माहौल बढ़ जाता है। पूजा की शुरुआत पंचमी को कलश स्थापना से होती है।
इसके बाद षष्ठी को कल्पारंभ होता है और सप्तमी को नवपत्रिका पूजा के साथ मुख्य अनुष्ठान आरंभ होते हैं। उसके बाद अष्टमी और नवमी पर विशेष पूजा और भोग का आयोजन होता है, जबकि दशमी को देवी विसर्जन और 'सिंदूर खेला' के साथ उत्सव का समापन होता है।
इन्हीं पावन दिनों में पश्चिम बंगाल, ओडिशा और देश के कई अन्य हिस्सों में दुर्गा पूजा का भव्य उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा के पांच दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस दौरान हर पंडाल में श्रद्धालुओं की भीड़ दो गुना बढ़ जाती है। भीड़ बढ़ने पर कोई हादसा न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। हर पंडाल में प्रशासन की ओर से विशेष व्यवस्था की जाती है।