क्या केष्टो मुखर्जी ने पत्नी की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए नया फ्लैट और टीवी खरीदा?

सारांश
Key Takeaways
- परिवार की खुशी सबसे महत्वपूर्ण होती है।
- अभिनय केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक कला है।
- असली जीवन में जिम्मेदारी और प्यार का महत्व होता है।
- केष्टो मुखर्जी का किरदार दर्शकों को हमेशा याद रहेगा।
- उन्होंने अपने काम से हास्य को एक नई परिभाषा दी।
मुंबई, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड के स्वर्णिम युग में एक ऐसा नाम था, जिसे देखकर दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी। उनकी लड़खड़ाती चाल, नशे से भरी आंखें, और हकलाती आवाज सिर्फ उनके उत्कृष्ट अभिनय का हिस्सा थे। हम बात कर रहे हैं केष्टो मुखर्जी की, जिन्हें हिंदी फिल्मों का सबसे प्रसिद्ध 'शराबी' कहा जाता था। लेकिन असली जीवन में वह इससे बिल्कुल विपरीत थे, उन्होंने कभी भी शराब का सेवन नहीं किया। वह न केवल एक शानदार अभिनेता थे, बल्कि एक जिम्मेदार पिता और पति भी थे।
7 अगस्त 1925 को कोलकाता में जन्मे केष्टो मुखर्जी के लिए परिवार सबसे महत्वपूर्ण था। फिल्मी चकाचौंध से दूर, उनका घर और वहां की शांति उनकी असली दुनिया थी। उनके बेटे बबलू मुखर्जी ने एक इंटरव्यू में इसका एक प्यारा उदाहरण साझा किया।
बात उन दिनों की है जब केष्टो मुखर्जी जुहू, मुंबई में एक छोटे से फ्लैट में किराए पर रहते थे। उनकी पत्नी को टीवी देखने का बहुत शौक था, लेकिन उस समय उनके घर में टीवी नहीं था। इस कारण वह अक्सर पड़ोसी के घर टीवी देखने चली जाती थीं। शुरू में सब ठीक था, लेकिन एक दिन पड़ोसी ने उन्हें आने से मना कर दिया। यह सुनकर उनकी पत्नी बेहद दुखी हो गईं।
जब केष्टो मुखर्जी को इस बात का पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने बिना ज्यादा सवाल किए कहा, 'अब तुम्हें किसी के घर टीवी देखने नहीं जाना पड़ेगा।'
कुछ हफ्तों बाद, केष्टो मुखर्जी ने जुहू में एक नया दो कमरों का फ्लैट खरीदा और साथ ही एक नया टीवी भी लाया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनकी पत्नी को अब कोई तकलीफ न हो। उनके लिए परिवार की खुशी सबसे ज्यादा मायने रखती थी।
केष्टो को बचपन से ही अभिनय का शौक था। उनकी फिल्मी यात्रा की शुरुआत मशहूर फिल्म निर्माता ऋत्विक घटक ने 1957 में अपनी फिल्म 'नागरिक' में एक छोटे से रोल देकर की, जो उनके करियर का मील का पत्थर साबित हुआ।
इस फिल्म में उनकी अदाकारी ने दर्शकों को प्रभावित किया और उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'मुसाफिर' में काम किया। इसमें उन्होंने एक स्ट्रीट डांसर का किरदार निभाया, लेकिन उन्हें असली पहचान शराबी के किरदारों से मिली।
उनका पहला शराबी किरदार 1970 में 'मां और ममता' फिल्म में था, जिसमें उन्होंने असित सेन के निर्देशन में बेहतरीन अभिनय किया। इसके बाद उनकी शराबी भूमिका उनकी पहचान बन गई और वे हर फिल्म में इस तरह के रोल करने लगे। उनकी कॉमिक टाइमिंग ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे महान हास्य अभिनेता बना दिया। उन्होंने 'चुपके चुपके', 'गोलमाल', 'गुड्डी', 'शोले', 'पड़ोसन', 'बॉम्बे टू गोवा' जैसी फिल्मों में काम किया।
उन्होंने अपने शानदार अभिनय के लिए 'फिल्मफेयर अवार्ड' भी प्राप्त किए।
केष्टो मुखर्जी का निधन 2 मार्च 1982 को हुआ। वह केवल 56 वर्ष के थे। उनका निधन एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना में हुआ, जब वह मुंबई के पास एक गणपति मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे। एक ट्रक ने उनकी कार को पीछे से टक्कर मार दी, जिससे उनका निधन हुआ।