क्या आरएसएस को आतंकवादी कहना कांग्रेस का आत्मघाती कदम है? : संजय निरुपम

सारांश
Key Takeaways
- आरएसएस का सामाजिक और राष्ट्रवादी योगदान महत्वपूर्ण है।
- कांग्रेस के विवादास्पद बयानों से उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो रही है।
- महापुरुषों का अपमान लोकतंत्र के लिए घातक है।
- भारत-पाक मैच पर लोगों की राय नकारात्मक है।
- राजनीतिक संवाद में सहिष्णुता की आवश्यकता है।
मुंबई, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस नेता उदित राज द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को आतंकवादी संगठन कहे जाने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
इस बयान पर शिवसेना प्रवक्ता संजय निरुपम ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे आपत्तिजनक और दुर्भावनापूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि आरएसएस एक सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी संगठन है, जिसने देश में करोड़ों देशभक्त व्यक्तित्व तैयार किए हैं।
संजय निरुपम ने कहा, “आरएसएस की अपनी विचारधारा है, जिससे कोई सहमत या असहमत हो सकता है। लेकिन लोकतंत्र में सभी को अपनी विचारधारा रखने का अधिकार है। ऐसे संगठन को आतंकवादी कहना न केवल दुर्भावनापूर्ण है बल्कि कांग्रेस पार्टी के लिए एक राजनीतिक आत्मघाती कदम भी है। कांग्रेस इस तरह के बयानों से अपनी ही कब्र खोद रही है।”
उन्होंने स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके बलिदान से ही देश को आजादी मिली।
संजय निरुपम ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि वे बार-बार सावरकर का अपमान करते हैं। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि कांग्रेस पिछली विधानसभा चुनाव में महज सोलह सीटों तक सिमट गई। यदि कांग्रेस प्रवक्ता सावरकर विरोधी बयान देते रहे तो राष्ट्रवादी जनता उन्हें पूरी तरह नकार देगी। महापुरुषों का अपमान लोकतांत्रिक राजनीति के लिए घातक है।
उन्होंने महाराष्ट्र कांग्रेस नेताओं से पूछा कि क्या वे ऐसे बयानों से सहमत हैं।
शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा भारत-पाक मैच पर दिए गए बयान पर भी संजय निरुपम ने बड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
उन्होंने कहा कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत में पाकिस्तान को लेकर गुस्सा है। लोग चाहते हैं कि भारत उसके साथ कोई मैच न खेले। एशिया कप जैसी मल्टीनेशनल प्रतियोगिता में परिस्थितियों के कारण भारत को मजबूरी में पाकिस्तान से खेलना पड़ा। जो लोग जावेद मियांदाद को घर बुलाते थे या भारत-पाक मैच देखने के लिए लाइन में खड़े रहते थे, वे दूसरों को देशद्रोही न कहें।