क्या है लाभ पंचमी: सौभाग्य और समृद्धि का पर्व? जानें शुभ कार्य और पूजा विधि
सारांश
Key Takeaways
- लाभ पंचमी का पर्व दीपावली के बाद आता है।
- सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा वृश्चिक से धनु राशि में गोचर करते हैं।
- इस दिन विशेष पूजा और शुभ कार्य से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है।
- गुजरात में इसे नववर्ष के पहले कार्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- नई डायरी में 'शुभ-लाभ' लिखकर कारोबार की शुरुआत की जाती है।
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लाभ पंचमी मनाई जाती है, जिसे सौभाग्य और ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। इस दिन सूर्य तुला राशि में तथा चंद्रमा सुबह 10 बजकर 46 मिनट तक वृश्चिक राशि में रहेंगे, इसके बाद वे धनु राशि में गोचर करेंगे।
द्रिक पंचांग के अनुसार, रविवार के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से प्रारंभ होगा और दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। वहीं, राहुकाल का समय शाम 4 बजकर 17 मिनट से 5 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
लाभ पंचमी का पर्व दीपावली के पांच दिन बाद आता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष पूजा और शुभ कार्य करने से व्यवसाय और जीवन में लाभ की प्राप्ति होती है।
यह पर्व विशेष रूप से गुजरात में मनाया जाता है और गुजराती नववर्ष के पहले कार्य दिवस के रूप में भी मनाने की परंपरा है। इस दिन अधिकांश व्यवसायी अपने कारोबार की नई शुरुआत करते हैं। वे नई डायरी खोलते हैं, जिसमें बाईं ओर 'शुभ' तथा दाईं ओर 'लाभ' लिखते हैं और बीच में स्वास्तिक बनाकर कारोबार का आरंभ करते हैं। यह परंपरा मुनाफे और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
इस दिन अनेक शुभ कार्य किए जाते हैं, जो धन और सौभाग्य को आकर्षित करते हैं। इस दिन चांदी या पीतल का कछुआ खरीदना आर्थिक समृद्धि का संकेत माना जाता है। कारोबारी नई डायरी में 'शुभ-लाभ' और स्वास्तिक लिखकर कारोबार की शुरुआत करने के साथ-साथ मां लक्ष्मी को खीर का भोग अर्पित करते हैं और सात कन्याओं को भोग करवाते हैं।
ऐसा करने से कारोबार में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और धन की देवी मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त, पूजा स्थल और तिजोरी में हल्दी की गांठ और फूल रखने से घर में बरकत बनी रहती है, जिससे आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।