क्या वाराणसी के लमही गांव में मुंशी प्रेमचंद की यादों को नया जीवन मिल रहा है?

सारांश
Key Takeaways
- मुंशी प्रेमचंद का साहित्य आज भी प्रासंगिक है।
- लमही गांव में उनकी यादों को संरक्षित किया जा रहा है।
- प्रेमचंद स्मारक में कई ऐतिहासिक वस्तुएं मौजूद हैं।
- छात्रों के लिए स्मारक ज्ञान का एक अद्भुत स्रोत है।
- प्रेमचंद की रचनाएं समाज की जटिलताओं को उजागर करती हैं।
वाराणसी, 8 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। वाराणसी से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित लमही गांव में आज भी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की यादें जीवित हैं। यही वह पैतृक गांव है, जहां प्रेमचंद ने अपने जीवन के अनमोल पल बिताए और समाज को दिशा देने वाले कई प्रसिद्ध उपन्यासों का सृजन किया। मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके आवास और स्मारक में विशेष सफाई और सजावट की जा रही है। स्थानीय लोग और छात्र प्रेमचंद को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंच रहे हैं, जो भारतीय साहित्य के इस महान लेखक के प्रति लोगों के सम्मान और लगाव को दर्शाता है।
संस्कृति विभाग द्वारा यहां प्रेमचंद स्मारक का निर्माण कराया गया है, जिसमें उनके जीवन और रचनाओं से संबंधित कई ऐतिहासिक वस्तुएं संरक्षित की गई हैं, जैसे उनका चरखा, पिचकारी और लेखन सामग्री। स्मारक में उनके उपन्यासों और कहानियों को भी प्रदर्शित किया गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके साहित्यिक योगदान से परिचित हो सकें।
मुंशी प्रेमचंद स्मारक के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, "मुंशी प्रेमचंद हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी भाषाओं के ज्ञाता थे। यहां उनके पास कई उर्दू लेख और अफशाने जैसे संग्रहित सामग्री है।"
उन्होंने बताया कि यहां प्रेमचंद की कहानियों और उनसे जुड़ी वस्तुओं को कला, चित्रों और वस्तुओं के माध्यम से दिखाया गया है। यहां छात्र-छात्राएं आते हैं, उन्हें बहुत सारी किताबें पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती, बस वे यहां की चीजों को देखकर ही मुंशी प्रेमचंद को समझ पाते हैं।
छात्रा नेहा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की यादें यहां भरपूर हैं। उन्होंने जिस तरह उपन्यास और साहित्य लिखा है, उससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। छात्र सौरभ ने कहा, "मुंशी प्रेमचंद ने समाज और ज़मीन से जुड़ी बातें लिखीं। इन्हीं कारणों से हम उन्हें याद करते हैं। हम मुंशी प्रेमचंद के आवास पर उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जानने आए हैं।