क्या अमजद अली खान ने सरोद की नई धुनों से रागों को नया जीवन दिया?

सारांश
Key Takeaways
- अमजद अली खान का जन्म 1945 में ग्वालियर में हुआ था।
- उन्होंने पारंपरिक रागों के साथ नए रागों का निर्माण किया।
- उनका संगीत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय है।
- उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं, जैसे पद्मश्री और पद्म विभूषण।
- उनका परिवार भी संगीत की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।
मुंबई, 8 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। 9 अक्टूबर 1945 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक संगीत के समृद्ध परिवार में जन्मे उस्ताद अमजद अली खान ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। वे एक अद्वितीय सरोद वादक हैं और एक ऐसे कलाकार भी हैं जिन्होंने पारंपरिक और नवीन रागों की रचना की। इसलिए, उन्हें संगीत की दुनिया में 'सरोद की नई धुनों के कारीगर' के रूप में जाना जाता है। उनकी संगीत यात्रा में परंपरा और नवाचार का अनोखा संगम देखने को मिलता है, जिसने उन्हें अलग पहचान दी।
अमजद अली खान का जन्म एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुआ था, जहां संगीत की परंपरा गहराई से जमी हुई थी। उनके पिता उस्ताद हाफिज अली खान स्वयं एक प्रसिद्ध सरोद वादक थे, जिन्होंने उन्हें बचपन से ही संगीत की बारीकियों से अवगत कराया। घर का माहौल संगीत से भरा था, इसलिए अमजद ने केवल पांच साल की उम्र में सरोद सीखना शुरू कर दिया। उन्होंने दस साल की उम्र में उस समय के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो के सामने संगीत प्रस्तुत किया। उनकी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति उन्होंने 12 साल की उम्र में दी, जिसमें उनकी लयकारी और सुरों की बारीकी ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अमजद अली खान ने न केवल भारतीय संगीत की परंपरा को संभाला, बल्कि उसे आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे सेनिया बंगश घराने के पांचवीं पीढ़ी के कलाकार थे, जिन्होंने पारंपरिक रागों के साथ प्रयोग करते हुए नए रागों का निर्माण किया। उनके प्रसिद्ध रागों में 'हरिप्रिया', 'सुहाग भैरव', 'विभावकारी', 'चन्द्रध्वनि', 'मंदसमीर', 'किरण' और 'रंजनी' शामिल हैं। ये नए राग उनकी प्रतिभा और रचनात्मकता का प्रमाण हैं, जिन्होंने हिंदुस्तानी संगीत को एक नया आयाम प्रदान किया।
उनका संगीत केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वे दुनियाभर में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए जाने गए। उन्होंने रॉयल अल्बर्ट हॉल, कैनेडी सेंटर, फ्रैंकफर्ट के मोजार्ट हॉल, सिडनी के ओपेरा हाउस सहित कई प्रतिष्ठित मंचों पर प्रदर्शन किया। उनके संगीत ने हजारों दिलों को छू लिया और भारतीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया। अमजद अली खान ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, महात्मा गांधी और राजीव गांधी जैसे नेताओं के लिए विशेष राग भी रचे।
अमजद अली खान की व्यक्तिगत जीवन कला और संगीत से जुड़ी रही है। उन्होंने भरतनाट्यम नृत्यांगना शुभालक्ष्मी से शादी की, जिनसे उनकी मुलाकात 1974 में कोलकाता में हुई थी। दोनों की शादी 1976 में हुई और उनके दो बेटे अमान अली बंगश और अयान अली बंगश भी सरोद वादक बने। इस प्रकार, उनके परिवार में संगीत की परंपरा सातवीं पीढ़ी तक चली।
अमजद अली खान को उनके संगीत के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें पद्मश्री (1975), पद्म भूषण (1991) और पद्म विभूषण (2001) से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, यूनेस्को पुरस्कार, कला रत्न पुरस्कार और तानसेन सम्मान भी प्राप्त हुए हैं। ये सभी पुरस्कार उनकी कला की महत्ता और उनके योगदान का प्रमाण हैं।