क्या उस्ताद अब्दुल राशिद खान सच में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे?

सारांश
Key Takeaways
- उस्ताद अब्दुल राशिद खान भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक अद्वितीय नाम हैं।
- उन्होंने ध्रुपद और ठुमरी में अपनी विशेषता दिखाई।
- उन्हें कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
- उनकी गायकी में भावनात्मक गहराई और ताल का अद्भुत नियंत्रण था।
- उन्होंने संगीत की परंपराओं को जीवित रखा।
मुंबई, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो अमर हो जाते हैं और उनकी कला हमेशा याद की जाती है। उस्ताद अब्दुल राशिद खान उन्हीं में से एक थे। उन्हें अक्सर उनके 'ख्याल' गायन के लिए याद किया जाता है, लेकिन उनकी विशेषज्ञता केवल इस शैली तक सीमित नहीं थी।
वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उस्ताद राशिद खान ध्रुपद, धमार, और ठुमरी जैसी कई शैलियों के मास्टर भी थे। इन शैलियों में भी उन्होंने एक अनूठी छाप छोड़ी।
उस्ताद अब्दुल राशिद खान का संबंध ग्वालियर घराने से था। 19 अगस्त को राशिद खान की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर संगीत की दुनिया में उनके योगदान को याद करना उचित होगा।
उस्ताद अब्दुल राशिद खान ने अपने पिता और भाई से बचपन में ही संगीत की शिक्षा प्राप्त की। ग्वालियर गायन में उनकी ट्रेनिंग हुई थी। इसके बाद उन्होंने स्वयं से ध्रुपद और धमार शैली की ट्रेनिंग लेनी शुरू की। उनके गाने को बीबीसी और इराक रेडियो द्वारा रिकॉर्ड किया गया था। उन्हें पद्मभूषण अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
उस्ताद अब्दुल राशिद खान ने ध्रुपद और धमार जैसी सदियों पुरानी शैलियों को जीवित रखा। ये संगीत के दो ऐसे रूप हैं जो अपनी गंभीरता, अनुशासन और लय की जटिलता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी गायकी में ध्रुपद की गरिमा और स्थिरता को बनाए रखा। उनकी गायकी में एक तरह की भव्यता थी जो सीधे सुनने वाले के दिल में उतर जाती थी।
इसी तरह उन्होंने धमार की जटिल लयकारी को भी बड़ी सरलता से प्रस्तुत किया। उनका ताल और लय पर गहरा नियंत्रण था। इन शैलियों में उन्होंने अपना एक स्पर्श छोड़ा, जो सुनने वालों को काफी पसंद आता था।
ठुमरी गायकी में उस्ताद राशिद का कोई मुकाबला नहीं था। उन्होंने शब्दों और राग के माध्यम से प्रेम, विरह और समर्पण जैसे भावों को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया। उनकी ठुमरी भी अलग स्तर की मानी जाती थी।
उस्ताद अब्दुल राशिद खान वास्तव में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक ऐसा कलाकार जिसने खुद को एक शैली में सीमित नहीं रखा। उनके 2,000 से अधिक संगीत रचनाओं को "रसन पिया" नाम की एक डॉक्यूमेंट्री में संजोया गया है।
उस्ताद अब्दुल राशिद खान को कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया था। इनमें आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी पुरस्कार (1994), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2009), काशी स्वर गंगा पुरस्कार (2003), भुवलका पुरस्कार (2010), और दिल्ली सरकार द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2013) शामिल हैं।